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धन-पुना. श्री आगमोदय समिति अन्यभी छोटी बडी सभावाने साहित्य प्रकाशित करने में अच्छी सफलता प्राप्त करी है-मनुष्य मात्रका फर्ज है कि अपनि २ यथाशक्ति तन मन धनसे धर्म साहित्य प्रचारमें अवश्य मदद देना चाहिये।
साहित्यप्रेमी परम् योगिराज मुनि श्री रत्नविजयजी महाराज साहिब के सदुपदेशसे संवत् १९७३ का आसाड शुद६ के रोज मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज द्वारा फलोधी नगरके उत्साही भावक वर्ग कि प्रेरणासे श्रीरत्नप्रभाकार ज्ञान पुष्पमाला नामकि संस्था स्थापित की गइ थी. संस्थाका खास उद्देश छोटे छोटे ट्रेक्टद्वारा जनता में जैनधर्म साहित्य प्रसिद्ध करनेका रखा गया था.
हरेक स्थानपर लम्बी चौडी बातों बनानेवाले या पर उपदेश देनेवाले बहुत मीलते है किन्तु जीस जगह रूपैये का नाम आता है तब कितनेक लोग धनाढ्य होनेपर भी मायाके मजुर उन्नतिके मेदान से पीच्छे हठ जाते है परन्तु मुनिश्रीके एक ही दिनके उपदेशसे फलोधी श्री संघने ज्ञानवृद्धिके लिये करीबन २०००) का चन्दाकर श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला में पुस्तके छपाने के लिये जमा करवाके इस संस्थाकि नीवकों मजबुत बनादि थी.मुनिश्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज साहबका १९७३ का चतुर्मासा फलोधी में हुवा आपश्रीने एक ही चतुर्मासा में ११ पुष्प प्रकाशित करवा दीया। चतुर्मासके बाद आपश्रीका पधारणा ओसीयातीर्थ जो कि श्री रत्नप्रभसूरीजी महाराजने उत्पलदे राजा आदि।३८४००० राजपुतोंको प्रथमही ओशवाल बनाके श्रीवीरप्रभुके बिंबकी प्रतिष्टा करवाइथी उन महापुरुषोंके स्मरणार्थ दुसरी शाखा रूप एक संस्था ओशीयों तीर्थपर श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाल स्थापित करी. जिस्का काम मुनिम चुनिलालभाइके सुप्रत किया गया था.चुनिलालभाइने ओशीयों तीर्थ तथा इन संस्थाकि अच्छी सेवा करी थी.