________________
( १४ )
नेताओं को अब मालुम होने लगी है कि साहित्य प्रकाश में हम. लोग कितने पाच्छाडी रहे है।
हमारे धर्म साहित्य लिखनेवाले और प्रकाशित करनेवाले पूर्वाचार्य हमारे पर बडा भारी उपकार कर गये है परन्तु इस बख्त पूज्यपाद प्रातः स्मरणीय न्यायांभोनिधि जैनाचार्य श्रीमत्रिजयानंदसूरीश्वरजी ( आत्मारामजी ) महाराज का हम परमोपकार मानते है कि आपश्रीने ज्ञानभण्डारोंके नेताओं को बडे ही जोर सोरसे उपदेश देकर जैसलमेर पाटण खंभात अमदाबाद आदि के ज्ञानभण्डरों में सडते हुवे धर्म साहित्युका उद्धार करवाया था आपश्री को साहित्य प्रकाशित करवानेका इतना तों प्रेमथा कि स्थान स्थान पर ज्ञानभण्डारों, लायब्रेरीयों, पुस्तक प्रचार मंडलों, संस्थावों आदि स्थापीत करवाके ज्ञानप्रचार बढाने मैं प्रेरणा करी थी । आपके उपदेशसे स्कूलों पाठशालाओं गुरूकुलवासादि स्थापित होनेसे समाज में ज्ञान कि वृद्धि हुई है । इतना ही नही बल्के यूरोप तक भी जैनधर्म साहित्यका प्रचार करने में आपश्रीने अच्छी सफलता प्राप्त करी थी उन धर्म साहित्य प्रचार कि बदोलत आज हमारी स्वल्प संख्या होने परभी सर्व धर्मो में उच्च स्थानकों प्राप्त कीया है अच्छे अच्छे विद्वान लोगों का मत्त है कि जैनधर्म एक उच्च कोटीका धर्म है ।
साहित्य प्रचार के लिये श्रावक भीमसी माणेक बंबाइ, जैन धर्म प्रसारक सभा - जैन आत्मानंद सभा भावनगर, श्रीयशोविजयजी ग्रन्थमाळा भावनगर, श्री जैन श्रेयस्कर मंडल मेसाणा, मेघजी हीरजी बंबाइ. अध्यात्म ज्ञान प्रकाश- बुद्धिसागर ग्रन्थमाला. श्री हेमचन्द्र ग्रन्थमाला. जैन तत्व प्रकाश मंडल, जैन ग्रन्थमाला -
रायचन्द्र ग्रन्थमाला - राजेन्द्रकोश कार्यालय — श्री रत्न प्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला, फलोधी. श्री जैन आत्मानन्द पुस्तक प्रचार मंडल, आग्रा- दिल्ही, व्याख्यान साहित्य ओफीस. जैन साहित्य संशा