Book Title: Sanskrit Prakrit Jain Vyakaran aur Kosh ki Parampara
Author(s): Chandanmalmuni, Nathmalmuni, Others
Publisher: Kalugani Janma Shatabdi Samaroha Samiti Chapar
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२० . संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोग की परम्परा
वे लोग गोम्मटसार की हस्तलिखित प्रति लाए। इस गाथा का पन्ना निकाला। वह पन्ना इधर-उधर लेते-देते फट गया। पता नहीं, किसके हाथ से फटा, पर फट गया। इस पर हगामा शुरू हो गया। तत्वचर्चा बीच में ही रह गई। माकोश उभर आया। मव्याल से लेकर दूसरे दिन सूर्योदय तक वातावरण तनावपूर्ण रहा। बीच-बीच में आचार्यवर के प्रवास-स्थल पर पथराव भी होता रहा ।
इस प्रकार की घटना से यह वोव-पाठ मिला कि ये तत्वचर्चा के प्रमंग कभी-कभी सार्थकता की अपेक्षा व्यर्थता को ही मिद कर देते है । तत्वचर्चा के अनुकूल या प्रतिकूल किमी भी प्रसग मे बाचार्यवर की समता को खंडित होते नही देखा। उनकी आकृति पर भृकुटि को तनते नही देखा। यह उनकी महज सिद्ध क्षमा का ही अनुदान है।
मक व्यक्ति पूर्वधारणा को तुष्टि के लिए ही नत्वचर्चा नहीं करते । किन्तु जानधारा मे अभिनव उन्मेप लाने के लिए भी करते है। उनका वाद निश्चित ही जानवर्धक होता है । तत्त्ववेत्ता के जीवन मे इस प्रकार की तत्त्वचर्चा के भी अनेक प्रमग आते हैं।
नये प्रयोग : नई दिशाएं
( १ ) पाचार्य का पद बहुत उत्तरदायित्वपूर्ण होता है। आचार्य के सामने अनेक समस्याए होती हैं। वे कभी-कभी नीद को भी प्रभावित कर देती हैं । आचार्यवर को जब नीट नही आती, तव वे स्वाध्याय का प्रयोग करते। कुछ लोग नीद की गोलिया खाकर नीद लेते है । यह स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है। स्वाध्याय का प्रयोग बहुत लाभप्रद है। मस्तिष्क मे तनाव नही रहता, ज्ञान-तन्तु कसे हुए नही रहते । स्नायविक तनाव नही होता, तब नीद अपने आप आ जाती है । कुछ लोग गिनती करते-करते नीद मे चले जाते हैं। कुछ लोग वास गिनते-गिनते नीद ले लेते हैं। आचार्यवर को नीद नही आती, तब वे मुझे बुलाकर कहते रवाध्याय शुरू करो। मैं किसी ग्रय के पाठ का पुनरावर्तन शुरू कर देता। आचार्यवर उसे सुनने लग जाते । कुछ ही मिनटो मे नीद आने लगती।
आचार्यवर आगम-मूतो का वाचन संस्कृत टीकाओ के माध्यम से किया करते थे। उस समय हमारे मघ मे वे ही एकमात्र इसके अविकारी थे। दूसरा कोई सस्कृत का विद्वान् नही था। कोई विषय उनके ध्यान मे नही आता, उसे चिन्तन