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सभ्यरज्ञानचन्द्रिका पीठिका ]
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उदय का वर्णन है । बहुरि एक जीव के युगपत् संभवती प्रकृतिनि के सत्व का रस स्थिति, अनुभाग, प्रदेश के सत्त्व का वर्णन है । बहुरि करपलब्धि का कथन विर्षे तीन करणनि का नाम-कालादिक कहि तिनके स्वरूपादिक का वर्णन है ।
तहां अधःकरण विर्षे स्थितिबंधापसरणादिक आवश्यक हो हैं, तिनका वर्णन है।
पर अपूर्वकरण विर्षे च्यारि आवश्यक, तिनविर्षे गुणश्रेणी निर्जरा का कथन है । तहां अपकर्षण किया हुआ द्रव्य कौं जैसे उपरितन स्थिति गुणश्रेणी पायाम उदयावली विर्षे दीजिए है, सो वर्णन है। तहां प्रसंग पाइ उत्कर्षण वा अपकर्षण किया हुभाष का निधो पर अतिस्वातन का विशेष वर्णन है । बहुरि गुणसंक्रमण इहा न संभव है, सो जहां संभव है ताका वर्णन है । बहुरि स्थितिकोडक, अनुभागकांडक के स्वरूप, प्रमाणादिक का अर स्थिति, अनुभागकांडकोत्करण काल का वर्णनपूर्वक स्थिति, अनुभाग, सत्त्व घटाउने का वर्णन है । , बहुरि अनिवृत्तिकरण विर्षे स्थितिकांडकादि विधान कहि ताके काल का संख्यातवां भाग रहें अंतरकरण हो है, ताके स्वरूप का, पर आयाम प्रमाण का, अर ताके निषेकनि का अभाव करि जहां निक्षेपण कीजिए है ताका इत्यादि वर्णन है । बहुरि अंतरकरण करने का अर प्रथम स्थिति का, अर अंतरायाम का काल वर्णन है । बहुरि अंतरकरण का काल पूर्ण भए पीछे प्रथम स्थिति का काल विर्षे दर्शनमोह के उपशमावने का विधान, काल, अनुक्रमादिक का, तहां पागाल, प्रत्यागाल जहां पाइए है वा न पाइए है ताका, दर्शनमोह की गुणश्रेणी जहां न होइ है, ताका इत्यादि अनेक वर्णन है।
बहुरि पीछे अंतरायाम का काल प्राप्त भए उपशम सम्यक्त्व होने का, तहां एक मिथ्यात्व प्रकृति कौं तीन रूप परिणमावने के विधान का वर्णन है । बहरि उपशम सम्यक्त्व का विधान विर्षे जैसे काल का अल्पबहुत्व पाइए है, तैसे वर्णन है । . बहुरि प्रथमोपशम सम्यक्त्व विर्षे मरण के अभाव का, अर तहां से सासादच होने. के कारण का, अर उपशम सम्यक्त्व का प्रारंभ वा निष्ठापन विर्षे जो-जो उपयोग, योग, लेश्या पाइए ताका, अर उपशम सम्यक्त्व के काल, स्वरूपादिक का, अर तिस. काल कौं पूर्ण भए पीछे एक कोई दर्शनमोह की प्रकृति उदय प्रावने का, तहां जैसे
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