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सम्मका पौडिका }
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बहुरि सामान्य संख्यात, असंख्यात, अनंत की, पर इनके इकईस भेदनि की, अर पत्य श्रादिश्राठ उपमा प्रमाण की, पर इनके अर्धच्छेद वा वर्गशलाकानि की संदृष्टिनि का वर्णन है । बहुरि परिकर्माष्टक विषे संकलतादि होते जैसे सहनानि हो है अर बहुत प्रकार संकलनादि होते वा संकलनादि आठ विषे एकत्र दोय, तीन आदि होते जो सहनानी हो है, वा संकलनादि विषै नेक सहनानी का एक अर्थ हो हैं इत्यादिकिनि का वर्णन है । पर स्थिति अनुभागादिक विर्षे आकाररूप सहनानी है, वा केई इच्छित सहनानी है, इत्यादिकनि का वर्णन है । असें सामान्य वर्णन करि पीछे श्रीमद् गोम्मटसार नामा मूलशास्त्र वा ताकी जीवतत्त्वप्रदीपिका नामा टीका, ताविषै जिस-जिस अधिकार विषै कथन का अनुक्रम लीए संख्यादिक अर्थ की जैसे-जैसे संदृष्टि है, तिनका
क्रम तैं वर्णन है। तहां केई करण वा त्रिकोणयंत्र का जोड़ इत्यादिकनि का संदृष्टिनि का संस्कृत टीका विषै वर्णन था पर भाषा करते अर्थ न लिख्या था, farer इस संदृष्टि अधिकार विषे अर्थ लिखिएगा। घर मूलशास्त्र के यंत्ररचना विष या संस्कृत टीका विषे केई संदृष्टिरूप रचना ही लिखी थी । तिनको अर्थपूर्वक इस संदृष्टि अधिकार विषै लिखिएगा, सो इहां तिनकी सूचनिका लिखें विस्तार होई, ता तहां ही वर्णन होगा सो जानना ।
sri कोक कहै - मूलशास्त्र वा टीका विषै जहां संदृष्टि वा अर्थ लिया था, तहां ही तुम भी तिनके अर्थनि का निरूपण करि क्यों न लिखान किया ? तहां छोडि farai एकत्र करि संदृष्टि अधिकार विषै कथन किया सो कौंन कारण ?
तहां समाधान
जो यहु टीका मंदबुद्धीनि के ज्ञान होने के अर्थ करिए है, सो या विषै बीच-बीच संदृष्टि लिखने तें कठिनता तिनको भासै, तब अभ्यास तें faमुख होइ, तातैं जिनको प्रर्थमात्र ही प्रयोजन होहि सो अर्थ ही का अभ्यास करी अर जिनकी संदृष्टि को भी जाननी होइ, ते संदृष्टि अधिकार विषै तिनका भी अभ्यास करौ ।
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बहुरि इहाँ कोई कहै - तुम अंसा विचार कीया, परंतु कोई इस टीका का अवलंबन तें संस्कृत टीका का अभ्यास कीया चाहै, तो कैसें अभ्यास करें ?
लाकों कहिए है - श्रर्य का तो अनुक्रम जैसे संस्कृत टीका विष है, तसे या विष है ही । अर जहां जो संदृष्टि आदि का कथन बीचि मैं आयें, ताक संदृष्टि अधिकार दि तिस स्थल विषे बाकी कथन है; 'ताको जानि तहां अभ्यास करी | ऐसे विचार संदृष्टि अधिकार करने का विचार कीया है।
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