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सम्याशामहिम गोठिका
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आबाधाकाल का वर्णन है। बहुरि कर्मस्थिति विर्षे निषेकनि का वर्णन है । बहुरि प्रथमादि गणहानिनि के प्रथमादि निषेकनि का वर्णन है। बहरि स्थितिरचना विर्षे द्रव्य, स्थिति, गुरणहानि, नानागुरणहानि, दोगुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त इनके स्वरूप, का, अर अंकसंदृष्टि का अर्थ अपेक्षा तिनके प्रमाण का वर्णन है । तहां नानागुणहानि अन्योन्याभ्यस्त राशि सर्व कर्मनि का समान नाहीं, तातै इनका विशेष वर्णन है । तहां मिथ्यात्वकर्म की नानागुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त जानने का विधान वर्णन है । इहां प्रसंग पाइ 'अंतधणं गुणगुरिणयं' इत्यादि करणसूत्रकरि गुणकाररूप पंक्ति के जोडने का विधान आदि वर्णन है। बहुरि गुणहानि, दो गुणहानि के प्रमाण का वर्णन है । तहां ही विशेष जो चय ताका प्रमाण वर्णन है ! ऐसे प्रमाण कहि प्रथमादि गुणहानिनि का वा तिनविर्षे प्रथमादि निषेकनि का द्रव्य जानने का विधान वा ताका प्रमाण अंकसंदृष्टि वा अर्थ अपेक्षा वर्णन है। बहुरि मिथ्यात्ववत् अन्यकर्मनि की रचना है। तहां गुणहानि, दो गुणहानि तो समान हैं, अर नानागुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त राशि समान नाहीं । तिनके जानने कौं सात पंक्ति करि विधान कहि तिनके प्रमाण का, पर जिस-जिसकाजेता-जेता नानागुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त का प्रमाण आया, ताका वर्णन है । बहुरि ऐसे कहि अंकसंदृष्टि अपेक्षा त्रिकोणयंत्र, अर त्रिकोणयंत्र का प्रयोजन, अर तहां एक-एक निषेक मिलि एक समयप्रबद्ध का उदय त्रिकोणयंत्र हो है। अर सर्व त्रिकोणयंत्र के निषेक जोड़े किचिदून द्वधगुणहानि गुरिणत समयप्रबद्ध प्रमाण सत्त्व हो है तिनका वर्णन है । बहुरि निरंतर-सांतररूप स्थिति के भेद, स्वरूप स्वामीनि का वर्णन है। बहुरि स्थितिबंध कौं कारण जे स्थितिबंधाध्यवसायस्थान तिनका वर्णन विर्षे प्रायु प्रादि कर्म के स्थितिबंधाध्यवसायस्थाननि के प्रमाण का पर स्थितिबंधाध्यवसाय के स्वरूप जानने कौं सिद्धांत वचनिका वर्णनकरि स्थिति के भेदनि कौं कहि तिन विर्षे जेते-जेते स्थितिबंधाध्यवसायस्थान संभवे तिनके जानने को द्रव्य, स्थिति, गुरगहानि, नानागुणहानि, दो गुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त का वा चय का, वा प्रथमादि गुणहानिनि का, वा तिनके निकनि का, वा आदि धनादिक का द्रव्यप्रमाण पर ताके जानने का विधान, ताका वर्णन है । बहुरि इहां एक-एक स्थितिभेद संबंधी स्थितिबन्धाध्यवसायस्थननि विर्षे नानाजीव अपेक्षा खंड हो है । तहां ऊपरली-नीचली स्थिति संबंधी खंड समान भी हो हैं; तातें तहां अनुकृष्टि-रचना का वर्णन है । तहां आयुकर्म का जुदा ही विधान है, तातै पहिले प्रायु की कहि, पीछे मोहादिक की अनुकृष्टि-रचना का अंकसंदृष्टि वा अर्थ अपेक्षा वर्णन है । तहां
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