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[अर्थसंदृष्टि प्रकरण खंडनि की समानता-असमानता इत्यादि अनेक कथन है । बहुरि अनुभागध को कारण जे अनुभागाध्यबसायस्थान तिनका वर्णन विर्षे तिन सर्वनि का प्रमाण कहि, तहां एक-एक स्थितिभेद संबंधी स्थितिबंधाध्यवसायस्थाननि विर्षे द्रव्य, स्थिति, गुणहानि आदि का प्रमाणादिक काहि एक-एक स्थितिबंधाध्यवसायस्थानरूप जे निषेक तिनविर्षे जेते-जेते अनुभागाध्यवसायस्थान पाइए तिनका वर्णन है । बहुरि मूलग्रंथकर्ताकरि कीया हुवा ग्रंथ की संपूर्णता होने विर्षे ग्रंथ के हेतु का, चामुंडराय राजा को पाशीर्वाद का, ताकरि बनाया चैत्यालय वा जिनबिंब का, वीरमातंड राजा कौं आशीर्वाद का वर्णन है । बहुरि संस्कृत टीकाकार अपने गुरुनि का वा ग्रंथ होने के समाचार कहे हैं तिनका वर्णन है ।
असे श्रीमद् गोम्मटसार द्वितीय नाम पंचसंग्रह मूलशास्त्र, ताको जीवतस्वप्रदीपिका नामा संस्कृतटीका के अनुसार इस भाषाटोका विणे अर्थ का वर्णन होसी ताको सूचनिका कही।
अर्थसंदृष्टि सम्बन्धी प्रकरण बहुरि तहां जे संदृष्टि हैं, तिनका अर्थ, वा कहे अर्थ तिनकी संदृष्टि जानने कौं इस भाषाटीका विर्षे जुदा ही संदृष्टि अधिकार विर्षे वर्णन होसी ।
___ इहां कोऊ कहै - अर्थ का स्वरूप जान्या चाहिए, संदृष्टिनि के जाने कहा सिद्धि हो है ?
ताका समाधान - संदृष्टि जानें पूर्वाचार्यनि की परंपरा ते चल्या पाया जो संकेतरूप अभिप्राय, ताकौं जानिए है । पर थोरे में बहुत अर्थ कौं नीकै पहिचानिए है । पर मूलशास्त्र वा संस्कृतटीका विर्षे, वा अन्य ग्रंथनि विर्षे, जहां संदृष्टिरूप व्याख्यान है, तहां प्रवेश पाइये है । अर अलौकिक मरिणत के लिखने का विधान प्रादि चमत्कार भास है । पर संदृष्टिनि को देखते ही ग्रंथ की गंभीरता प्रगट हो है - इत्यादि प्रयोजन जानि संदृष्टि अधिकार करने का विचार कीया है ।
तहां केई संदृष्टि प्राकाररूप है, केई. अंकरूप है, केई अक्षररूप है, केई लिखने हो का विशेषरूप है, सो तिस अधिकार विर्षे पहिले तो सामान्यपने संदृष्टिनि का वर्णन है, तहां पदार्थनि के नाम से, संख्या से पर अक्षरनि ते अंकनि की पर प्रभृति आदि की संदृष्टिनि का वर्णन है ।
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