Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चौथा स्थिति पद - तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति
२७
उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की कही गई है।
जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं भंते! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट पूर्व कोटि (करोड़ पूर्व) की है।
अपज्जत्तगाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहूत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! अपर्याप्तक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! अपर्याप्तक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है।
पज्जत्तगाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त कम पूर्व कोटि की कही गई है।
संमुच्छिम जलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन् ! सम्मूछिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! सम्मूच्छिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्व कोटि की कही गई है।
अपज्जत्तगाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
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