Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चौथा स्थिति पद - तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों की स्थिति
२५
उत्तर - हे गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है।
प्रश्न - हे भगवन्! अपर्याप्तक पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है।
प्रश्न - हे भगवन्! पर्याप्तक पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! पर्याप्तक पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की कही गई है।
विवेचन - जिस प्रकार मनुष्य के समुच्चय रूप से तीन भेद कहे गये हैं। अकर्म भूमि, कर्म भूमि और सम्मूछिम। इसी प्रकार तिर्यंच पंचेन्द्रिय के भी समुच्चय रूप से तीन भेद होते हैं। अकर्म भूमि, कर्म भूमि और सम्मूछिम। जिस प्रकार कर्म भूमि मनुष्य का आयुष्य पूर्व कोटि (एक करोड़ पूर्व) तक होता है इससे अधिक नहीं होता। इसी प्रकार कर्म भूमि तिर्यंच पंचेन्द्रिय का आयुष्य भी कोटि पूर्व (एक करोड़ पूर्व) तक का होता है। इससे अधिक नहीं। एक कोटि पूर्व से अधिक आयुष्य वाला मनुष्य और गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय अकर्म भूमि का युगलिक कहलाता है। तिर्यंच पंचेन्द्रिय के पांच भेद होते हैं। यथा - जलचर, स्थलचर, नेचर (खहचर), उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प। ये पांचों भेद अकर्म भूमि में भी होते हैं, किन्तु जलचर, उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प ये तीन तो अकर्म भूमि में जन्म होने पर भी युगलिक नहीं होते हैं और इनका आयुष्य करोड़ पूर्व से अधिक नहीं होता है। स्थलचर और खेचर (खहचर) ये दोनों युगलिक होते हैं इनमें से स्थलचर युगलिक का आयुष्य उत्कृष्ट तीन पल्योपम और खेचर युगलिक का आयुष्य पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग होता है। जो कि आगे बताया गया है। वह युगलिक स्थलचर व युगलिक खेचर का समझना चाहिए।
संमुच्छिम पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी।
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
उत्तर - हे गौतम! सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्व कोटि (करोड़ पूर्व) की कही गई है।
अपज्जत्तगाणं पुच्छा?
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