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ऐतिहासिक-काल जिस समय सोलंकी मूलराज ने इस (धरणीवराह ) पर चढ़ाई की थी, उस समय इसने उक्त राठोड़ धवल का आश्रय लिया था। मारवाड़ में किसी कवि का बनाया एक छप्पय प्रचलित है । उससे प्रकट होता है कि धरणीवराह ने अपने नौ भाइयों में अपना राज्य बांट दिया था और इसी से यह देश 'नौ कोटी मारवाड़' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। परंतु अजमेर चौहान अजयदेव के समय बसा था; जिसका समय वि० सं० ११६५ के करीब आता है । ऐसी हालत में उक्त छप्पय के अनुसार धरणीवराह का अपने एक भाई को अजमेर देना सिद्ध नहीं हो सकता ।
धरणीवराह की पांचवीं पीढी में कृष्णराज द्वितीय हुआ । भीनमाल से इसके समय के दो लेख मिले हैं । एक वि० सं० १११७ का है' और दूसरा वि० सं० ११२३ का । इस कृष्ण से दो शाखाएँ चलीं । एक आबू की और दूसरी किराड की । इस कृष्णराज को गुजरात के सोलंकी भीमदेव प्रथम ने कैद कर लिया था । परंतु नाडोल के शासक चौहान बालप्रसाद ने इसे छुड़वा दिया। ___ वि० सं० १२८७ में, गुजरात के सोलंकी भीमदेव का सामंत, परमार सोमसिंह आबू का राजा था। इसने अपने पुत्र कृष्ण तृतीय ( कान्हड़देव ) को (गोडवाड़ परगने का ) नाणा गांव दिया था।
वि० सं० १३६८ के करीब तक तो परमार ही आबू के शासक रहे, परंतु इसी के आसपास वहां पर चौहानों का अधिकार हो गया ।
किराडू से मिले, वि० सं० १२१८ के, लेख में किराडू की शाखा के पंवार-नरेशों के तीन नाम दिए हुए हैं। ये गुजरात के सोलंकी नरेशों के सामंत थे।
बारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के कुछ लेख (नागोर परगने के ) रोल नामक गांव से मिले हैं। इनसे उस समय वहां पर भी परमारों का अधिकार रहना सिद्ध होता है।
पौकरण से विक्रम की दसवीं शताब्दी के करीब का एक लेख मिला है । उसमें गुहिलवंश का उल्लेख है । आबू के अचलेश्वर के लेख से गुहिलराजा जैत्रसिंह का नाडोल को नष्ट कर तुरकों को भगाना लिखा है ।
१. बाँबे गजेटियर, जि० ५, भा० १, पृ० ४७२-४७३ २. बाँबे गजेटियर, जि० १, भा० १, पृ० ४७३-४७४ ३. जैत्रसिंह वि० सं० १२७० स १३०६ तक विद्यमान था और वि० सं० १२५६ के बाद
नाडोल पर कुतुबुद्दीन का अधिकार हो गया था। इसलिये मैत्रसिंह ने इसके बाद ही चढ़ाई की होगी।
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