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ऐतिहासिक - काल वि० सं० १३११ के, सुँधा से मिलें, चाचिगदेव के लेख से भी उसके पिता चौहान उदयसिंह (वि० सं० १२६२ से १३०६) का मंडोर पर अधिकार होना पाया जाता है । इसके बाद वि० सं० १२८४ में वहां पर शम्सुद्दीन अल्तमश का अधिकार होगया । परंतु कुछ काल बाद मुसलमानों की कमज़ोरी से मंडोर फिर पड़िहारों के अधिकार में चला गया । इस पर वि० सं० १ १३५१ में जलालुद्दीन फीरोजशाह खिलजी ने चढ़ाई कर पड़िहारों को वहां से भगा दिया ।
वि० सं० १४५२ के करीब मुसलमानों से तंग आकर ईंदा शाखा के पड़िहारों ने फिर एकवार मंडोर पर अधिकार कर लिया । परंतु उसकी रक्षा करना कठिन जान उन्होंने उसे राठोड़ राव चूड़ाजी को दहेज में दे दिया, जो अब तक उन्हीं के वंशजों के अधिकार में है ।
वि० सं० ७४३ के क़रीब चौहान वासुदेव ने अहिच्छत्रपुर से आकर शाकंभरी ( सांभर ) में अपना राज्य कायम कर लिया था । इसी से ये ( चौहान ) शाकंभरीश्वर ( सांभरीराज ) कहाए और इनके राज्य का प्रदेश, जिसमें नागोर आदि के प्रान्त भी थे, 'सपादलक्ष' या 'सवालख' के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
वि० मं० १०३० का सांभर के चौहान राजा विग्रहराज के समय का एक लेख शेखावाटी (जयपुर-राज्य ) के हर्षनाथ के मंदिर से मिला है। उससे ज्ञात होता है कि उस समय तक चौहान लोग कन्नौज के पड़िहारों के सामंत थे । परंतु उसके बाद धीरे-धीरे स्वतंत्र हो गए । 'पृथ्वीराजविजय काव्य' के लेखानुसार वि० सं० ११६५ ( ई. स. ११०८ ) के क़रीब चौहान अजयदेव ने अजमेर बसाकर उसे इस वंश की राजधानी बनाया । वि० सं० १२५१ तक तो वहां पर इसी वंश का अधिकार रहा, परंतु इसके बाद प्रसिद्ध पृथ्वीराज चौहान के भाई हरिराज की मृत्यु के बाद उस पर मुसलमानों का पूरी तौर से अधिकार हो गया ।
इसी वंश की एक शाखा ने वि० सं० १०१७ ( ई. स. १६०) के क़रीब नाडोल का राज्य क़ायम किया था । परंतु वि० सं० १०७८ के बाद ही इस शाखा के तक की प्रशस्तियों के मिलने से यह लेख उस समय के बादका ही प्रतीत होता है ।
१. वि० सं० १९७४ में एकवार मंडोर पर मुसलमानों का अधिकार हो गया था । परन्तु शीघ्र ही चौहान उदयसिंह ने वहां पर फिर से अधिकार कर लिया ।
२. वि० सं० १२४६ में पृथ्वीराज शहाबुद्दीन गोरी द्वारा मारा गया था।
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