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कर दी तो उत्तेजना की स्थिति में आपको उसकी तेजोलब्धि का शिकार होना पड़ता है।
तेजो लेश्या का प्रयोग कर अनेक व्यक्ति को भस्मसात कर सकता है।
मूल विभाग १० है, यथा-जैन दार्शनिक पृष्ठभूमि
५-विज्ञान १-जैन दर्शन
६-प्रयुक्त विज्ञान २-धर्म
७-कला-मनोरंजनक्रीड़ा ३-समाज विज्ञान
८-साहित्य ४-भाषा विज्ञान
६-भूगोल-जीवनी इतिहास प्रत्येक के नौ-नौ विभाग है । उनमें • जैन दार्शनिक पृष्ठ भूमि में ०० सामान्य विवेचन ०१ लोकालोक, ०२ द्रव्य, ०३ जीव, ०४ जीव परिणाम, आदि की रूप रेखा दी है तथा उनमें जीव परिणाम के विभाग भी दिये गये हैं ( देखे पृष्ठ १०११ ) ·५८.१० में पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य जीवों में कितनी लेश्या होती है इसका विवेचन है। आगे विवेचन इस प्रकार है---
'५८.११ अप कायिक '५८१२ अग्निकायिक० '५८ १३ वायुकायिक० .५८ १४ वनस्पतिकायिक '५८ १५ द्वीन्द्रिय '५८.१६ त्रीन्द्रिय० •५८.१७ चतुरिन्द्रिय .५८ १८ पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनि.. ५८.१६ मनुष्य योनि० ५८.२० वानब्यंतर देव .५८ २१ ज्योतिषी देव •५८ २२ सौधर्म देव •५८ २३ ईशान देव आदि ।
लेश्या और क्रिया
औदारिक आदि शरीरों को बनाते हुए जीव ( बांधते हुए ) ( एक वचन व बहुवचन की अपेक्षा ) कदाचित् तीन क्रिया ( कायिकी, आधिकारिणिकी और
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