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लब्धिसार
[ गाथा ६४ अर्थ--उसके पश्चात् अतिस्थापना एक-एक समय बढ़ते हुए प्रावलिप्रमाग । उत्कृष्ट अतिस्थापना हो जाती है, इसके पश्चात् निक्षेपावलिके असंख्यातवेंभ से उत्कृष्टनिक्षेप प्राप्त होनेतक बढ़ता है। उत्कृष्ट निक्षेप-उत्कृष्टस्थितिको बांधकर । बंधावलि बीत जानेपर उस उत्कृष्ट स्थितिके अन्तिमनिषकसम्बन्धी द्रव्यका अपकर्षणकरके उदयादि निषेकोंमें निक्षेपण किया अर्थात् दिया। अनन्तर अगले समयमें द्वितीयावलि के प्रथमनिषेकका उत्कर्षरण करनेके लिये उस अनन्तरसमयमें उत्कृष्टस्थितिस हेत बंधनेवाले कर्मकी उत्कृष्ट पाबाधाको अतिस्थापना कर प्रथमादि निषेकोंमें निक्षेपण होता है, किन्तु अन्तके एक समयाविक प्रवलिप्रमाण निषेकोंमें निक्षेपण नहीं होता । अतः एकसमयअधिक प्रावली और आबाधाकाल इन दोनोंसे न्यून उत्कृष्टस्थितिप्रमाण उत्कृष्टनिक्षेप है'।
विशेषार्थ-तदनन्तर एकसमयाधिक स्थितिबन्धके होनेपर निक्षेप उतना ही रहता है, किन्तु प्रतिस्थापना वृद्धिको प्राप्त होती है । ___ शंका-ऐसा क्यों है ?
समाधान--क्योंकि सर्वत्र प्रतिस्थापनाकी वृद्धिपूर्वक ही निक्षेपकी वृद्धि देखी । जाती है।
शंका--किन्तु वह प्रतिस्थापनाको उत्कृष्टवृद्धि कितनी होती है ?
समाधान--प्रतिस्थापनाके एक प्रावलिप्रमाण होनेतक उसकी वृद्धि होती रहती है। स्थिनिबन्धकी वृद्धिके साथ वह जघन्य प्रतिस्थापना एक-एक समयाधिकके क्रमसे बढ़ती हुई पूरी एक प्रावलिप्रमाण उत्कृष्ट प्रतिस्थापनाके प्राप्त होनेतक बढ़ती जाती है।
शंका- इससे आगे भी अतिस्थापना क्यों नहीं बढ़ाई जाती है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि परमप्रकर्षको प्राप्त हो जानेपर फिर उसकी वृद्धि होने में विरोध आता है।
उसके प्रागे उत्कृष्ट निक्षेपके प्राप्त होनेतक निक्षेपकी वृद्धि होती है । यहांपर पूर्वमें विवक्षित मत्कर्मको अग्रस्थितिके उत्कृष्ट निक्षेपकी वृद्धि एक-एक समयअधिकके
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१. ज.ध. पु. ८ पृ. २५६-२६१ । २. ज.ध, पु. ८ प. २६० ।