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काम आ गई | इतिहासकी आत्मा शस्त्रोंकी धारपर समाधिमें विलीन हो गई । अब केवल इतिहासका भूत मुनिजीके काग़ज़में चिपटा बैठा है !
४. यह पद्मपुर है, गोंदिया तहसील में — महाकवि भवभूतिकी जन्मभूमि ! यहाँ खेत-खेतमें जैन- मूर्तियाँ मिलती हैं । इतिहास खेतों में बो दिया गया है । ध्वंसकी फसल लहलहा रही है !
५. यह डोंगरगढ़ है, सचमुच दुर्गमगढ़ ! यहाँकी मूर्तियाँ उपकरणोंके लालित्य के कारण बड़ी सुंदर और अद्वितीय हैं । संतोष की बात हो सकती थी कि यहाँ इन मूर्तियोंकी पूजा होती है । पर लज्जाकी बात है कि अहिंसाके अवतार, जैन तीर्थंकरकी मूर्तिके श्रागे पूजाके दिनोंमें याज भी बकरीका बच्चा जीवित गाड़ा जाता है । यहाँ इतिहास पूजता है !
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६. यह जसो है, विन्ध्यप्रदेशकी प्रसिद्ध पुरातत्त्वभूमि । इसकी मुख्यता यह है कि इसे 'जैन - मूर्तिका नगर' कहा जाता है । बड़े कामकी हैं ये मूर्तियाँ । इन मूर्तियोंकी बड़ी सुन्दर सीढ़ियाँ बनती हैं । और वह देखिए, तालाबपर हर धोबीका हर पाट चिकना चिकना, मजबूत मज़बूत इन्हीं मूर्तियों का बना है । और, सुनिए मुनिजीको बात । कहते हैं— 'किसानोंके शौचालयसे एक दर्जन मूर्तियाँ मैंने उठवाई ।' जसो की बात मैं कह रहा हूँ । इसी जसीमें एक तालाब है । इसी जसो में एक राजा साहब थे, उन राजा साहबका एक हाथी था । एक दिन वह बेचारा हाथी मर गया । दूर कहाँ ले जाते, तालाबके किनारे गाड़ दिया । जहाँ गाड़ा वहाँ एक गढ़ा रह
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