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रहा होगा । पुराने इतिहासको छोड़िये । यही पौनार है जहाँ आचार्य विनोबा भावेने महात्मा गांधीके श्रादेशानुसार पहली बार व्यक्तिगत सत्याग्रहको क्रियात्मक रूप दिया था । इस पौनारमें लेखकने १६४३ में १४वीं शताब्दीका एक शिलालेख पढ़ा था जो विशेष ऐतिहासिक महत्त्वका था और जो इतिहासकी किसी गुत्थीको सुलझानेमें सहायक हो सकता था । उस समय जिस व्यक्तिके पास वह लेख था, उसने किसी तरह भी वह नहीं दिया । १६५१ में लेखक जत्र पुनः गये तो मालूम हुआ वह लेख किसी मकानकी दीवार में पत्थरकी जगह लग गया है । इतिहास अक्षर लोप हो गये ! !
२. यह केलकर है, पौनारसे १० मील दूर । यहाँ कई स्तम्भ हैं । और यह एक खंडित-सा स्तम्भ है जिसपर अखण्डित समवशरण चित्रित है— इतना सुन्दर और भव्य कि
लेखकने आजतक ऐसा समवशरण खुदा हुआ नहीं देखा | इस स्तम्भपर जिस किसान का दावा है, वह रोज ढेरके ढेर कंडे इसपर सुखाता है । यहाँ इतिहासकी लिपिपर गोबरकी कलाका लेप हो रहा है । क्षितिजपर लोप उग रहा है !
३. यह नागरा है, भंडारा जिलेमें । १६४२ में लेखक वहाँ गये तो एक मूर्तिपर १५ पंक्तियोंका लेख मिला, जिसके ऐतिहासिक महत्त्व से प्रभावित होकर उन्होंने इसे नकल कर लिया । मूर्तिकी व्यवस्था ठीक न हो सकी, क्योंकि वह मूर्ति किसानों के लिए बड़े कामकी थी । वह उसपर
ज़ार तेज़ करते थे । सन् १९५१की यात्रामें पाया कि वह मूर्ति किसी महंतकी समाधिमें खण्ड-खण्ड होकर
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