Book Title: Kasaypahudam Part 02
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
सुत्तगाहाए अत्थो वारेण एयत्तुवलंभादो । एसो गुणहरभडारएण णिद्दिष्टत्थो । विभक्तिका कथन किया गया है, इसलिये इस अपेक्षासे वे तीनों एक हैं। ऊपर यह जो कुछ कहा गया है वह गुणधरभट्टारक द्वारा बतलाया हुआ अर्थ है ।
विशेषार्थ-गुणधर भट्टारकने कसायपाहुडकी १८० गाथाएं पन्द्रह अर्थाधिकारोंमें व्यवस्थित की हैं यह तो 'गाहासदे असीदे' इत्यादि दूसरी गाथासे ही जाना जाता है। तथा उन्होंने 'पेजं वा दोसं वा' 'पयडीए मोहणिज्जा' और 'कदि पयडीओ बंधदि' ये तीन गाथाएं पारम्भके पांच अर्थाधिकारोंमें मानी हैं यह कसायपाहुडकी 'पेज्जदोसविहत्ती' इत्यादि तीसरी गाथासे जाना जाता है। पर इस तीसरी गाथाके अनुसार वीरसेनस्वामी जो पांच अधिकारोंका विभाग कर आये हैं उससे इस पूर्वोक्त उल्लेखमें फरक पड़ता है। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि वीरसेनस्वामीने तीसरी गाथाके पूर्वार्धकी व्याख्या करते हुए जो तीन विकल्प संभव थे वे वहां बतला दिये और 'पगदीए मोहणिज्जा' इसकी व्याख्या करते हुए इससे जो चौथा विकल्प ध्वनित होता है उसका निर्देश यहां कर दिया है। गाथाके पूर्वार्ध में विभक्ति शब्द मुख्य है और शेष पद उसके विषयभावसे आये हैं, अतः इस पदसे वीरसेनस्वामीने यह अभिप्राय निकाला है कि गुणधरभट्टारकके मतसे प्रकृतिविभक्ति, स्थितिविभक्ति और अनुभागविभक्ति इन तीनोंका एक अधिकार हुआ । तथा गाथाके उत्तरार्ध में उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेश, झीणाझीण और स्थित्यन्तिक इन तीनों के द्वारा एक प्रदेशविभक्तिका कथन किया गया है अतः इन तीनोंका एक अधिकार हुआ। इस प्रकार इस चौथे विकल्पके अनुसार १ पेजदोषविभक्ति, २ प्रकृति-स्थिति-अनुभागविभक्ति, ३ प्रदेशझीणाझीण-स्थित्यन्तिक, ४ बन्ध और ५ संक्रम ये पाँच अधिकार होते हैं।
उक्त चार विकल्पोंके अनुसार ५ अधिकारोंका सूचक कोष्ठक नीचे दिया जाता हैपेजदोषविभक्ति | पेज्जदोषविभक्ति पेज्जदोषविभक्ति पेज्जदोषविभक्ति
(प्रकृति विभक्ति) (प्रकृति विभक्ति) स्थितिविभक्ति स्थितिविभक्ति स्थितिविभक्ति
प्रकृति, स्थिति और (प्रकृतिविभक्ति)
अनुभाग विभक्ति अनुभागविभक्ति ___ अनुभाग विभक्ति । अनुभागविभक्ति प्रदेशविभक्ति, (प्रदेशवि० झीणाझीण (प्रदेशविभक्ति, झीणा
झीणाझीण और और स्थित्यन्तिक) झीण और स्थित्यन्तिक)
स्थित्यन्तिक बन्ध
प्रदेशविभक्ति झीणा- बन्ध
झीण और स्थित्यन्तिक संक्रम संक्रम बन्ध
संक्रम
बन्ध
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