________________
लोक-विभाग और तिलोयपण्णत्ति
लोक-विभाग लोक-विभाग बहुत ही प्राचीन ग्रन्थ है । श्रीयुत विन्सेंट ए० स्मिथने अपने इतिहास ( अली हिस्ट्री ऑफ इंडिया) के पृष्ठ ४७१ में इसका उल्लेख किया है और इसे शककी चौथी शताब्दिका बतलाया है । खोज करनेपर हमें इसकी एक प्रति स्वर्गीय विद्याप्रेमी सेठ माणिकचन्दजीके सरस्वती-भण्डारसे प्राप्त हो गई । इसकी श्लोक-संख्या २२३० और पत्र-संख्या ७१ है । भट्टारक भुवनकीर्तिके शिष्य ज्ञानभूषण भट्टारकके उपदेशसे किसी लेखकने इसकी प्रतिलिपि की थी। अतएव यह विक्रमकी सोलहवीं शताब्दिकी लिखी हुई प्रति है। ज्ञानभूषण इसी शताब्दिमें हुए हैं। __ ग्रन्थकी भाषा संस्कृत और छन्द अनुष्टुप् है । इसमें १ जम्बूद्वीप, २ लवणसमुद्र, ३ मानुष-क्षेत्र, ४ द्वीप-समुद्र, ५ काल, ६ तिर्यग्-लोक, ७ भवनवासि-लोक, ८ गति, ९ मध्य-लोक, १० व्यन्तर-लोक, ११ स्वर्ग और मोक्ष विभाग नामके ग्यारह अधिकार या अध्याय हैं । इसका मंगलाचरण यह है
लोकालोकविभागज्ञान भक्त्या स्तुत्वा जिनेश्वरान् । व्याख्यास्यामि समासेन लोकतत्त्वमनेकधा ॥१॥ अन्तिम प्रशास्तिके श्लोक ये हैंभव्येभ्यः सुरमानुषोरुसदसि श्रीवर्द्धमानार्हता, यत्प्रोक्तं जगतो विधानमखिलं ज्ञातं सुधर्मादिभिः।