Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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जैन धर्म मे तप ___दो कारणो से इस ससार अटवी का पार पाया जा सकता है। वे दो कारण (मार्ग) है-विद्या और चारित्र !
विद्या का अर्थ है-~-ज्ञान और चारित्र का अर्थ है-सयम । ज्ञान और क्रिया-ये दो मोक्ष के मार्ग हैं । सूत्रकृताग में भी इसी वात पर बल देकर कहा गया है
आहसु विज्जा धरणं पमोक्खो-१ विद्या और चरण-अर्थात् ज्ञान और कर्म के समन्वय से ही मुक्ति हो सकती है। इसीलिए मोक्ष मार्ग के पथिक मुमुक्षु जनो को 'विज्जाचरण पारगा'-विद्या और चरण के पारगामी कहा गया है ।
प्रसिद्ध नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु ने एक दृष्टात देकर बताया है"किसी जगल मे एक पगु मनुष्य पडा था, उसने देखा कि जगल मे भयंकर आग लग गई है, धू-धूकर लपटें उठ रही हैं, बडे-बडे वृक्ष जलकर राख हो रहे है। आग की लपटें बढती हुई उसकी ओर आने लगी। पागले मनुष्य का कलेजा धक्-धक् करने लगा, जगल के सभी जीव इधर-उधर दौड रहे थे, पर विचारा पगु आग को पास मे आती देखकर भी हताशनिराश वैठा रहा, उसके पाव नही थे, चल नहीं सकता था, देखकर भी करे तो क्या करे ? वह मन ही मन भगवान का नाम ले रहा है, और जोर-जोर से पुकार रहा है ---"कोई परोपकारी मनुष्य इधर आकर मुझे वचालो"
तभी एक सूरदास महाराज रास्ते मे भटकते हुए उपर आ गये । 'जगल मे हाहाकार क्यो मच रहा है ?' पर कौन उत्तर दे। वह इसी प्रकार चिल्लाता हुआ उधर ही जाने लगा, जिधर आग की लपटे उछल रही थी। पगु महाराज ने देखा तो पुकारा-"सूरदाम महाराज | कहा जा रहे हो ?"
सूरदास--"यह क्या हो रहा है ?"
१ सूचकृताग ११११