Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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लक्ष्य साधना
"जो मुक्ति की इच्छा रखता हो, वह मुमुक्षु है ।" साधु भी और श्रावक भी—दोनो ही मुमुक्षु कहलाते हैं। क्योकि दोनो की कामना एक ही हैमुक्ति ।
__ अब प्रश्न यह है कि ध्येय तो हम सबका एक है, एक ही हमारी मजिल है, एक ही लक्ष्य की ओर हमे चलना है, किन्तु उस ध्येय को प्राप्त करने का मार्ग कौन-सा है ? नगर मे जाना है, तो मार्ग भी मिलना चाहिए ! यदि मार्ग का ज्ञान न होगा तो मजिल सामने दिखाई देने पर भी हम उस तक पहुंच नही सकेंगे। समुद्र के बीच द्वीप है, वहा रत्नो का ढेर लगा है, पत्थर और ककर की तरह वहा हीरे-मोती बिखरे पड़े हैं, वहा की मिट्टी सोना है, और यह देख-देखकर आपकी आंखें ललचा रही हैं, आपके पाव उछल-कूद मचा रहे है वहा तक जाने को, किंतु प्रश्न यह है कि वहा तक जायें कैसे ? रास्ता भी तो मिलना चाहिए ! कोई साधन भी तो मिले कि हम वहा तक पहुंच जायें।
यही प्रश्न हमारे सामने है--मोक्ष के अनन्त और अव्यावाघ सुख, अनन्त ऐश्वर्य, अनन्त आत्मशक्तिया और आध्यात्मिक विभूतिया देखकर हम चाहते है उन्हे प्राप्त करें, किंतु कैसे ? आज के प्रसंग मे हम इसी प्रश्न पर विचार करेंगे कि मोक्ष प्राप्ति के उपाय क्या हैं ?
मोक्ष के दो मार्ग. ज्ञान और क्रिया स्थानाग सूत्र के दूसरे स्थान में बताया गया है-मोक्ष मार्ग का पथिक अणगार दो मार्गों पर चलता हुआ इस अनादि-दीर्घ ससार रूप कातार (जगल) का पार पा सकता है
दोहि ठाणेहिं संपन्ने अणगारे अणाइय, अणवदग्गं दीहम संसारकतार वीइवएज्जा, तं जहा
विज्जाए चेव, चरणेण चेव ।
१ स्थानाग सूत्र २।१६५