Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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हमारा लक्ष्य
इस प्रकार आपके सामने मैंने पहली बात स्पष्ट की-हमारा लक्ष्य है-~मोक्ष | भत उसका स्वरूप है-~-आत्मलाभ | अर्थात् हम जहा है, वही वैठे आत्म-दर्शन कर सकते हैं और वही से मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। भरत चक्रवर्ती, मरुदेवी माता के उदाहरण आपके समक्ष हैं । भरत जी आरीशा भवन मे बैठे-बैठे ही केवलज्ञान प्राप्त कर गये, रागद्वेष से मुक्त हो गये
और मरुदेवी माता तो हाथी के हौदे पर विराजमान रही और मुक्त हो गई। इन उदाहरणो से यही बात स्पष्ट की गई है कि आत्मा जहाँ भी रागद्वेप से मुक्त हो जायेगा वही वह मोक्ष प्राप्त कर लेगा।।
अब प्रश्न दूसरा है-इस लक्ष्य को प्राप्त करने का साधन क्या है ? कैसे हम अपनी उस मजिल तक पहुंच सकते है। इस प्रश्न पर अगले प्रकरण मे विचार किया जायेगा।
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