________________
.
. . स धाता स विधाता स वायुन उच्छुितम् ॥ ३॥
सोऽर्यमा स वरुणः स रुद्रः स महादेवः ॥ ४ ॥ सोऽग्नि स सूर्यः स एव महायमः
अर्थात्-बह अग्नि ही ( धाता ) बनाने वाला, (वह विधाता) नियम बनाने वाला है । वह वायु है, वह ऊँचा मेघयदल है. वह अर्यमा, वरुण, मद्र, नहादेव, अग्नि, सूर्य तथा वही अमि महायम है। ऋ० मं०५ । ३ में भी यही भाव है। - उपरोक्त मन्त्र में प्रथम मन्त्र का ही अनुमोदन है। यदि किसी को इस चतुर्थ सूक्तके विषय मन्ह हो कि यह सूक्त सूर्य परक है या नहीं तो उसका कर्तव्य है कि वह सम्पूर्ण सूक्त को पड़ ले उसको शंका स्वयं दर हाजायगी कि सूक में सूर्यक्री रश्मियों का तथा उसकी चालका और उदय होने श्रादिका पर्ण वर्णन है । इसी सूर्य के लिये लिखा है कि
य आत्मदा क्लदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्यदेवा । य अस्पेशेः द्विपदो यश्चतुष्पदम् तस्य देवस्य ॥ अथवे० १३ । ३ । २४ ___ अधीन -जिस सूर्य के मंत्र १३ में सब नाम गिनाये है वह सूर्य अात्मा व बलका देने वाला है । सब देवता जिसके शासनको मानते हैं। जो इन दापायोंका तथा चौपायोंका स्वामी है इत्यादि। इस मूल के अने: मन्त्रों में सूर्यको महिमा कही गई है । तथा जिनने गुण परमात्मा के माने जाते हैं उन सबका श्रारोप यहाँ सूर्य में किया जाता है। ऋचायें उत्पन्न हुई तथा सब कुछ उसमे उत्पन्न हुआ यह स्पष्ट लिखा है। भोले-भाले प्राणी यह समझते हैं कि जब ऐसा है तो यहाँ अवश्य ईश्वर का ही वर्णन है । वह