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हार विरुद्धत्वात् । वस्तुतस्तु येदे कुयापि अनि शब्दः परमेश्वरार्थे प्रयुक्तो नामून् । भ्रान्तिरेषा विदुषो दयानन्दस्य "
अर्थात- वेदों में अग्नि शब्दसे श्रादि मानव अथवा · जड़ अग्निका बांध होता है। ब्रह्म हिं श्रांमः' इस शतपथ वाक्य में ब्रह्माका कथन है । न कि ईश्वर का। ईश्वरविद्धान, गणितज्ञ है,
आदि प्रयोग लोक बिरुद्ध होने के कारण ठीक नहीं है। वास्तव में नो वेदों में कहीं भी अमि शन्न परमेश्वर अर्थमें प्रयुक्त नहीं हुश्रा है 1 अग्निका अर्थ ईश्वर करना यह विद्धान दयानन्द की
भ्रान्ति है।" इसी प्रकार इन्द्र आदि शब्दों के लिये भी श्रापने लिखा है । यया-गध वायुः परमेश्वरः" इति महती मत्र भ्रान्ति स्तस्य दयानन्दम्य इति मुण्डुक वचनान गम्यत"
अग्नि देवता स वरुणः सायमग्नि भवति स मित्रो भवति प्रातरुवन स सविता भूत्वान्तरिक्षेण थाति स इन्द्रो भूत्वा तपति मध्यतो दिवं तस्य देवस्य । अथर्ववेद कां०१३सू.० ३०१३ ___ अर्थ यह अनि सायं समय वरुण होता है, प्रातः काल उदय के समय मित्र होता है. वह सवितः होकर अन्तरिक्ष में जाता है, वह इन्द्र होकर यो का मध्यमे तप.ता है।
अथर्ववेद का यह अभिसूक्त दर्शनीय है: जो भाई अग्ने आदि को परमात्मा कहत हैं उनको यह सूक्त विशेषतया देखना नाहिये । प्रत्येक बुद्धिमान श्रादभी समझ सकता है कि यहाँ इस जड़ सूर्यके सिवा अन्य वस्तु का वर्णन नहीं है। आगे सूः ४ में भी इसी सूर्य का वर्णन है। वहाँ लिखा है कि--