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ॐ ही मई" मैं पूजा के द्रव्य को धोता हूँ स्वाहा। . २५ ॐ हीं गई....मैं हाथ मोदता हूँ. स्वाहा । २६ ही लक्षये. मैं कलश उठाता, स्वाहा।
ॐ ॐ सर, मैं दर्म डालकर भाग जलाता हूँ स्वाहा। ॐ ह्री. मैं पवित्र जलसे द्रव्य शुद्धि करता हूँ, स्वाहा । ॐ ही, मैं कुश प्रक्षण करता हूँ, स्वाहा । ॐ ही, में पवित्र गंधोदक को सिर पर लगाता हूँ, स्वाहा।
ॐ ही..., मैं बासक को पालने में सुलाता हूँ, स्वाहा । ३२ ऊही भई प्रसिभाउसा, मैं पासक को बिठलाता हूँ. स्वाहा।
३३ ॐ ही श्री भई, में बालक के कान नाक वीषता हूँ, असि भासा स्वाहा।
३४ ॐ मुक्ति शक्ति के देने वाले अहन्त भगवान को नमस्कार में बालक को भोमन करता हूँ...स्वाहा!
२५ ॐ......, मैं बालक को पैर धरना सिखलाता हूँ, स्वाहा।
प्रायः ये सभी मंत्र नमसूरि-त्रिवर्णाचार में भी पाये जाते हैं और वहीं से उठाकर यहाँ रखे गये मालूम होते हैं। परंतु किसी २ मंत्र में कुछ अक्षरों की कमी बेशी अथवा तबदीली जरूर पाई जाती है और इससे उस विचार को और भी ज्यादा पुष्टि मिलती है जो ऊपर बाहिर किया गया है। साथ ही, यह मालूम होता है कि ये मंत्र जैनसमान के लिये कुछ अधिक प्राचीन तथा रूढ नहीं है और न उसकी व्यापक प्रकृति या प्रकृति के अनुकूल ही जान पड़ते हैं। कितने ही मंत्रों की सृष्टि-उनकी नवीन कल्पना—महारकी युग में हुई है और यह बात आगे चक्षकर सष्ट की जायगी | - '
(२)पं० आशाधर के अंधों से भी कितने ही पथ, इस त्रिवर्णा। पार, में, बिना नाम धाम के संग्रह किये गये हैं । छठे अध्याय में २२