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[२०] उक्त ८० वें पथ से पहले भादिपुराण का जो १२४ वा पथ उद्धृत किया गया है यह एक प्रकार से बेढंगा तथा असंगत नान पड़ता है। मह पब इस प्रकार है
प्रतापतरण चेदं शुरुसाहिकतार्चनम्।
वत्सरा हादसावर्षमथवा पोडशात्परम् ॥६-७ ॥ इसमें 'इदं शब्द का प्रयोग बहुत खटकता है और वह पूर्वकपन को 'तावतरण किया का कपन बतलाता है परन्तु अन्य में यह 'प्रतचों का कथन है और 'वतचर्यामहं वक्ष्ये' इस ऊपर उधृत किये हुए पद्य से प्रारम्भ होता है । मत! महारकाजी की इस काट छाँट और उगई धरी के कारण दो क्रियाओं के कपन में कितना गोलमाल होगया है, इसका अनुमष विन पाठक स्वयं कर सकते हैं
और साथ ही यह जान सकते है कि महारानी काट घोट करने में कितने निपुण थे।
(५) श्रीशुभचन्द्राचार्य-प्रणीत 'ज्ञानार्णव' प्रन्य से भी इस त्रिवर्णाचार में कुछ पयों का संग्रह किया गया है। पहले अध्याय के पाँच पयों को जांचने से मालूम हुआ कि उनमें से तीन पथ तो ज्यों के लों और दो कुछ परिवर्तन के साप उठा कर रखे गये हैं। ऐसे पषों में से एक एक पद्य नमने के तौर पर इस प्रकार है
चतुर्वर्णमय मंत्र चतुर्वर्गफलमवम् । चतपत्र जपेयोगी चतुर्थस्य फलं भवेत् ॥ ७॥ विधां पड्वर्णसंभूताममय्या पुण्यशालिनीम् ।
जपन्याशुकमभ्येति फसध्यानी शवयम् ॥६॥ ये दोनों पप हानाग के ३८ प्रकरण के पद्य हैं और वहां क्रमशः नं० ११ तथा ५० पर दर्ज है-यहाँ इन्हें भागे पछि उद्धृत किया गया है। इनमें से दूसरा पद्य तो ज्यों का त्यों उठा कर रक्खा