Book Title: Granth Pariksha Part 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 251
________________ [२३८] के साहित्यसे यहाँतक गिलता जुलता है कि एकको दूसरेकी नका कहना कुछ मी अनुचित न होगा। चताम्बर 'धर्मपरीक्षा को इस लेखका परीक्षा विषय है, दिगम्बर 'धर्मपरीक्षा से ५७५ वर्ष बादचा बनी हुई है। इसलिए यह कहने में कुछ भी संकोच नहीं हो सकता कि पयसागर गणीने अपनी धर्मपरीक्षा अमितगतिको 'धर्मपरीक्षा' परसे ही बनाई है और वह प्रायः उसकी नकल मात्र है। इस नाउमें पनसागर गणीने अमितगतिके भाशय, ढंग (शैली ) और भावोंकी ही नकश नहीं की, बल्कि उसके अधिकांश पद्योंकी प्रायः अक्षरश: नात कर डाली है और उस सबको अपनी कृति बनाया है, जिसका खुलासा इस प्रकार है: पद्मसागर गणीको धर्मपरीक्षामें पोंकी संख्या कुल १४८४ है। इनमें से चार पध प्रशस्तिके और छह पर मंगलाचरण तथा प्रतिज्ञाके निकालकर शेप १४७४ पयोमसे १२६० पथ ऐसे हैं, जो अमिक्षति की धर्मपरीक्षासे ज्योंके त्यों उठाकर रक्खे गये हैं। बाकी रहे २१४ पद्य, वे सब अमितगतिके पयों परसे कुछ परिवर्तन करके बनाये गये हैं। परिवर्तन प्रायः छदोभेदको विशेषताको लिये हुए है। अमितगति की धर्मपरीक्षा पहला परिच्छेद और शेष १६ परिच्छेदोंके अन्तके कुछ कुछ पद्य अनुष्टुप् छन्दमें न होकर दूसरेही छदम रचे गये हैं। पत्नसागर मणीनं उनमें से बिन जिन पोंको ठेना उचित समझा है, उन्हें अनुष्टुप् छन्दमें बदलकर रख दिया है, और इस तरहपर अपने ग्रंथमें अनुष्टुप् छंदोंकी एक लम्बी धारा बहाई है। इस धारामें आपने परिच्छेद-भेदको मी बहा दिया है । अर्थात् , अपने प्रयको परिच्छेदों या अभ्यायोंमें विभक्त न करके उसे बिना हॉलटिंग स्टेशन वाली एक लम्बी और सीधी सड़क के रूपमें बना दिया है । परन्तु अन्तमें पांच पयोंको, उनकी रचनापर मोहित होकर अपना उन्हें सहजमें अनुष्टुप् छदषच रूप न देसकने आदि किसी कारणविशेषसे, ज्योंका सो मिन

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