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[२४१] किसी दिगम्बर जेमकी कृति न समझ लिया नाय, इस मयसे गणीनी महाराजने इस पपकी नो कायापलट की है वह इस प्रकार है
स्यकाशान्तरो ग्रंथो निष्क्रियो विजितेत्रियः। परीपासहः साधुभषाम्भोनिधितारकः ॥१३७६॥
यहाँ 'जातरूपपरो मता' के स्थानमें 'भवाम्भोनिषि. तारका' (संसारसमुद्रसे पार करनेवाला ) ऐसा परिवर्तन किया गया है। साथ ही, 'निकषायः' की जगह 'निष्क्रियः' मी बनाया गया है, जिसका कोई दूसरा हो रहस्य होगा। ३-कन्ये नन्दासुनन्दाक्ये कच्छस्य नृपतेषण।
जिवन योजयामास नीति कीती वामले ॥१-१४ दिगम्बरसम्प्रदायमें, ऋषभदेवका विवाह राना कचकी नन्दा और पुनन्दा नामको दो अन्यानों के साथ होना माना जाता है। इसी बातको लेकर भगिगतिने उसका ऊपरके पबमें उल्लेख किया है । परन्तु सेताम्बर. सम्प्रदायमें, ऋषभदेवकी बियांक नामोंगे कुछ भेद करते हुए, दोनों ही बियोंको राजा कच्छको पुत्रियाँ नहीं माना है। बल्कि सुमंगलाको स्वयं, ऋषभदेषके साथ उत्पन्न हुई उनकी सगी बहन बतखाया और सुनन्दाको एक दूसरे युगलियेकी बहन पयाम किया है जो अपनी बहन के साथ खेलता हुआ अचानक बाल्यावस्थामें ही मर गया था। इसलिए पनसागरजी ने अमितगतिके उक्त पधको बदलकर उसे नीचेका रूप देदिया है, जिससे यह ग्रंथ दिगम्बर ग्रंथ न समझा जाकर खेताम्बर सम चिया बाय:--
सुमंगलानुमन्दाग्ये कम्ये सह पुरन्दः। । । जिनेन योजयामास नातिकीर्ती वामझे ॥ १३४७ ॥ इस प्रकार, यपि प्रयकता महाशयने अमितगतिकी कृतिपर अपना पार्वल और स्वामित्व स्थापित करने और उसे एक खेताम्बर ग्रंथ मनाने के लिए बहुत कुछ अनुचित ठाएं की है, परतु तो भी वे इस (धर्मपरीक्षा)