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प्रकलंकप्रतिष्ठापाठकी जाँच । .
'अकलक- प्रतिष्ठापाठ ' या ' प्रतिष्ठाकल्प' नामका एक ग्रंथ है, जिसे ' अकखकसंहिता' भी कहते हैं और जो जैनसमाजमें प्रचलित है। कहा जाता है कि 'यह प्रन्थ वन भाकलंक देवका बनाया हुका है जो 'राजवार्तिक' और 'अष्टशती' आदि प्रन्थोंक कर्ता हैं और जिनका समय विक्रमकी ८ वीं शताब्दी माना जाता है। यद्यपि विद्वानोंको इस कथन पर संदेह भी है, परन्तु तो भी उक्त कथन वास्तवमें सत्य है या नहीं इसका अभीतक कोई निर्णय प्रगट नहीं हुआ । अतः यहाँ इसी विषयका निर्णय करनेके लिए यह लेख लिखा जाता है:
यह तो स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ में प्रन्धके बनने का कोई सन्-संवत् नहीं दिया। परन्तु प्रन्थकी संधियों प्रन्थकर्ताका नाम ' भट्टाकलंकदेव ' जरूर लिखा है । गथाः -- इत्याचे श्रीमद्भाङ्ग्राकसंकदेवसंगृहीते प्रतिहाकल्पनानि प्रये सूत्रस्थाने प्रतिष्ठादिचतुष्टयनिरूपणीयो नाम प्रथमः परिच्छेदः ॥ १ ॥
"संधियोंको छोड़कर पथमें भी प्रत्यकतने - अपना नाम ' महांकलंकटेस प्रकट" किया है। जैसा कि आदि अन्तके निम्न लिखित दो पद्मति जाहिर है -- 'प्रतिष्ठां कल्पनामासौ प्रयः सारसमुच्चयः ।
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भेडाकलंकदेवेन साधुसंगृहाते स्फुटम् ॥ ५ ॥" '"भट्टाकलंकदेवेन कृतो ग्रंथो यथागमम् । प्रतिष्ठा कल्पनामासी स्थेयादांचंद्रवारकम् ॥
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* राजवार्तिक' के कर्ताको छोक्कर, महाकलंकदेव नामके कोई दूसर विद्वान् आचार्य जैनसमागमें प्रसिद्ध नहीं हैं। इस लिए मालुम होता है कि, संघियों और पयोंमें ' महाकल्कदेव ' का नाम लगा होनेसे ही यह अन्य राजवार्तिकके कर्ताका बनाया हुमा समझ किया गया है। अन्यथा, ऐसा समझ लेने और कथन करनेकी कोई दूसरी वजह नहीं है। महाफलकदेवके बाद होनेवाले किसी मानवीय प्राचीन आचार्यकी कृतिमें भी इस प्रन्थका कोई उलेख नहीं मिलता। प्राचीन शिलालेख भी इस विषय में मौन हैउनसे कुछ पता नहीं चलता। ऐसी हालत में पाठक समझ सकते है कि एक कपन कहाँ तक विश्वास किये जानेके योग्य हो सकता है । अस्तु । जहाँतक मैने इस प्रन्थको देखा और इसके साहित्यकी जाँच की है उससे मालूम होता है कि यह अन्य वास्तनमें रानवार्तिक के कर्ता भक्काकलंकदेवका बनाया हुआ नहीं है; उनसे बहुत पीछेका बना हुआ है। भाकलंकदेवके साहित्य और उनकी कथनशैलीले इस प्रन्धके साहित्य और कपनशैलीका कोई मेल नहीं है। इसका अधिकांश साहित्य-शरीर ऐसे अन्योंके व्याधार पर बना हुआ है जिनका निर्माण महाकसंकदेवके अवतारसे बहुत पीछेके समय में हुआ