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है। वहाँ पाठकोंक संतोपाचे प्रमाण अस्तित किये जाने हैं, जिनसे पाठकोको इस पातका भी अनुभव हो पाया कि यह मन्य माना है जोर किसने बनाया है
(१) प्रतिमा के पांचवें परिच्छेदमें पानसे पय ऐसे पाए खाते हो भगवविवसेनानीत 'पानिपुरार' से ज्योंके लोमा परिवर्तनके साप उसार लवे गये हैं। ममून वीर पर बस ARE
चैत्ययालयावी मक्त्या निर्मापण व थत् ।
शासनहित्य दानं च प्रामादीनां सदार्चनम् ॥ २३ । यह पब मारिपुरामके ३४३ पका २० वो पल है और यहां ज्योपलो बिना किसी परिवर्तन लाया है।
वासर्वा मप्यहवाळ्यापूर्षिका यत इत्या।
विधिवास्तासुरान्तीयां वृत्ति प्राथमकल्पकाम् ॥ २० ॥ इस पथका मारा और मारिपुरणके उक पर्व सम्बन्धी १४ में पका उसाचं दोनों एक है। परन्त पूपा दोनों पकि मिा निम पाए जाते हैं। बाविपुराणके तक ३४ में पपका पूर्वार्थ है ' एवं विविधावेन या महेन्या जिनेशिनाम् ।। प्रन्यानि पूर्वको अपने स्वी पारियोदके ३.३ पला पूर्षि क्लाया है। और इस तरह पर मादिशामके एक पक्षको दो राम विभाजित करके बन्हें मन्य मग स्थानों पर सका है।
पलिखपवमन्यव मतमुवापनादिकम् ।
उन्वेव विकल्पेषु धमन्य तारसम् ॥ २९॥ यह पर पारिसपनो ३४३ पर्व, ०१ पर ही फारसे 'मित्यन्यत् मिसंन्यासेवया समम्' की जमकर 'मन्यच अनुयापनाविका ऐसा परिवर्तन पाया जाता है। इस परिवर्तनसे प्रन्धक्याने 'मिसंध्यालेवा' के साबमें 'प्रत' और 'उद्यापनादिको बस बोरसे पंच कारके पूछने शामिला है। मह स उपाहरणों प्रकार है पन्ध (प्रतिपाठ) भगवविनसेनके मापुराणसे पहलेएका हुआ नहीं है। परन्तु मालकदेव भवामिनसेक्स पहले से मुके हैं। मम्पलिनसेनवे, महाकाठक-श्रीपाल पात्रकेसरिणय गुणाः पत्यादि पक्के हारा, बाविश्राममें, उसका स्मरप मी बिना है। ऐसी मसमें मामय प्रापि माकाकादेवका पनाया हुमा नहीं हो सकता । और इस लिए पता होगा कि यह प्रतिपाठ भाविनसेनके माविबसे पीछे वात, मिकी यो मवादी पाक-सा है।
(२)वं मन्थके सासरे परिच्छेद में एक स्थान पर, प्राणायाम समयकाये हुए मिले हैं। उनमे एक पथ इस प्रकार है