Book Title: Granth Pariksha Part 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 263
________________ २५० ही यह सब प्रकरण वियम्बर धर्मपरीक्षाके १२ में परिछेवसे क्योंका स्वों नकल कर डाला है। सिर्फ एक पत्र नं० ७८४ में ' पूर्वे' के स्थानमें ' वर्षे' का परिवर्तन किया है । अनितगतिने ' दशमे पूर्वे ' इस पदके द्वारा महादेवको दशपूर्वका पाठी सूचित किया था। परन्तु गणीजीको अमितगति के इस प्रकरणकी सिर्फ इतनी ही बात पसंद नहीं आई और इसलिए उन्होंने उसे बदल डाला है । (९) पद्मसागरबी, अपनी धर्मपरीक्षामें, जैनशाखानुसार 'कर्णराम ' की उत्प तिका वर्णन करते हुए, लिखते हैं कि I 'एक दिन ध्यास राजाके पुत्र पाण्टुको बनमें क्रीडा करते हुए किसी विद्याधरकी 'काममुद्रिका' नामकी एक अंगूठी मिली। थोड़ी बेरमै उस अंगूठीका स्वामी चित्रांगद नामका विद्याधर अपनी मगूठीको ईंडता हुआ वहाँ जा गया । पाण्डने उसे उसकी मह अंगूठी दे दी। विद्याधर पांडकी इस प्रकार निःसृहता देखकर बन्धुत्वमानको प्राप्त हो गया और पापको कुछ विषम्पचित्त जानकर उसका कारण पूछने लगा । इसपर पहिने कुन्तीसे विवाह करने की अपनी उत्कट इच्छा और उसके न मिलनेको अपने विवादका कारण बतलाया । यह सुनकर उस विद्याधरने पांङको अपनी वह काममुद्रिका देकर कहा कि इसके द्वारा तुम कामदेवका रूप बनाकर कुन्तीका सेवन करो, पीछे गर्म रह धानेपर कुन्तीका पिता तुम्हारे ही साथ उसका विवाह कर देगा । पाण्ड काममुद्रिकाको लेकर कुन्तीके घर गया और बराबर सात दिनतक कुन्तीके पास विषयसेवन करके उसने उसे गर्भवती कर दिया । कुन्तीकी माताको जब गर्मका हाल भारतम हुआ तब उसने गुप्त रूपसे प्रसूति कराई और प्रसव हो माने पर मारुकको एक मंजूषामै बन्द करके गंगामें बहा दिया । गंगामें बहता हुआ वह मंजूषा चंपापुरके राजा 'आदित्य' को मिला, जिसने उस मंजूषासे सच बालकको निकालकर उसका नाम 'कर्म' एक्च्खा, और अपने कोई पुत्र न होनेके कारण बड़े ही हर्ष और प्रेमके साथ उसका पालन पोषण किया । आदित्य के मरने पर वह पालक चम्पापुरका राजा हुआ। चूंकि 'आवित्व" नामके राजाने कर्मका पालनपोषण करके उसे पडिको प्राप्त किया था इसलिए कर्ण 'आदिस्य' कहलाता है, वह ज्योतिष्क जातिके सूर्यका पुत्र कदापि नहीं है ।' पद्मसागरशीका यह कथन भी वेताम्बर ग्रामोंके प्रतिकूल है। श्वेताम्बरोके श्रीदेवनियमगनिनिरचित 'पांडवचरित्र 'में पांशुको राजा विचित्रवीर्य' का पुत्र लिखा है और उसे 'मुद्रिका' देनेवाले विद्याधरका नाम 'विशालाक्ष ' बताया है। साथ ही यह भी लिखा है कि 'वह विद्याधर अपने किसी शत्रुके द्वारा एक इक्षके नितम्बमें लोहेकी कीछोंसे कीलित था। पांडने उसे देखकर उसके शरीरसे वे * ग्रह सब कषम नं० १०५९ से १०९० तकके पद्योंमें वर्णित है और अमितगतिधर्मपरीक्षाके, १५ वें परिच्छेद लकर रक्खा गया है । 1

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