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भी घिरा हुआ है। साथ ही, जैनागम में उसे वैसी कोई प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है। अतः उसमें पूतत्व आदि गुणों की कल्पना करना, उससे उन गुणों की प्रार्थना करना और हिन्दुओं की तरह से उसकी पूजा
पीपल का पूजना लोक मूड़ता की कोटि से नहीं निकल सकता, फिर भी यहाँ पर इतना और पतला देना चाहता है कि गंगादिक मापियों के जिस स्लान की यहाँ तुलना की गई है वह संगत मालूम नहीं होता, क्योंकि महल शारीरिक मनशुद्धि के लिये जो गंगादिक में स्नान करना है यह उन नदियों का पूजन करना नहीं है और यहाँ स्परूप से पूजितुं गच्छेत् आदि पदों के द्वारा पीपन की पूजा का विधान किया गया है और उसकी तीन प्रदक्षिणा देना तथा उससे'प्रार्थना करना न लिखा है-यह नहीं लिखा कि पीपल की 'छाया में बैठना अच्छा है अथवा उसके नीचे बैठकर अमुक कार्य करना चाहिये, इत्यादि । और इसलिये नदियों की पूजा-वन्दनादि करना निष तख मिथ्यावासी तरह पूज्य बुद्धि को लेकर पीपल की यह उपासना करना भी मिथ्यात्व है। हाँ; एक दूसरी जगह (१० अध्याय में); लोकमूहमा कार्वन करते हुए सोनीजी लिखते है- सर्वसाधारण अमि, पुषः पर्वत मादि पूल्य क्यों नहीं और विशेष विशेष कोई 'कोई पूज्य भयो । इसका उत्तर यह कि जिनसे दिन भगवान का सम्बन्ध पूज्य है। अन्य नहीं।" परन्तु • पीपल की पावत मापने यह भी नहीं पतलाया कि इससे जिन भग'वान का क्या खास सम्बन्ध है, जिससे हिन्दुओं को चरा इसकी कुछ पूजा बना सकती, बल्कि वहाँ पोधिका अर्थ 'पई करके 'मापने अपने पूर्व कपन के विरुद्ध पोपवीत संस्कार के समय । पापा की जगहड़पन की पूजाका विधान करदिया है! और या
आपके अनुवाद की और मी विनवणा!! .