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'यह उनकी मासमी का मोतक है। इस उपराध में, जिसका
पूर्वाध है 'नोहादिक मंत्रेषु नियोगा कीयते क्वचित 'विषयावेदन पर अपने पूर्वापरसम्बंध से 'नियोग' का बाधक है-संतानोत्पत्ति के लिय विधया के अस्थायी महा का सूपको-कोर इसीये खत वाय का माराप सिर्फ इतना ही है कि विवाह-विवि में नियोग नहीं होता--नियोग विधि में नियोग होता है। दोनों की नीति और पति मिन मिला है। अन्यथा, मनुजी ने उसी अध्याय में परित्यक्षा {AR )और विधवा दोनों के लिये पुनर्विवाहसरकार की व्यवस्था की है, जैसाकि मनुस्मृति के निम्नवाक्यों से प्रकट है
पापा परित्या विषयाचा उत्पादयत्पुरत्यास पौन उच्यते ॥ १७५० जापानवानि स्वातप्रत्यागठापि वा । पौनयन मर्धा सा पुन: संस्कारमहति । १७६ ॥ 'पशिष्ठस्मृति में भी विखा है कि नो को अपने नपुसक, पतित या उन्मच मार को कोबार भया पति के मामाने पर इमरे पति के साथ विवाह करती है वह 'पुनर्मू कहलाती है। साथ ही, यह भी बतलाया है कि पाश्चिमास सरकार हो जाने के बाद पति के मर जाने पर यदि वह मनसंखया जी माजतयोनि हो पति के साथ उसका समोग मनमा हो-तो उसका फिर से विवाह होना योग्य है । था.
"या पलीव पवितभुन्म वा मासुलण्याय पति विदो सवेशासानभूमपति। "पापियो मुवे वाला केवावं मेहता। सादवयोनिः स्थानासंसार महति ॥
-१७ वा अध्याय । इसी तरह पर नारद स्थति आदि के और कोटिशीय प्रयास के भी कितने ही प्रमाणा नदात किये जा सकते है। परामर स्मृति