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[२१८ केचिदमत्कुल जाता पुत्रा व्यन्त सुरः।
ते गृहन्तु मया दचं वसानिष्पीडनावकम् ॥ १३ ॥ अर्थात्-हमारे कुशमें जो कोई पुत्रहीन मनुष्य मरकर व्यन्तर जातिके देव हुए हो, उन्हें मैं धोती आदि क्ससे निचोड़ा हुआ पानी देता हूँ,उसे वे ग्रहण करें।
यह तर्पणके बाद धोती निचोदने का मंत्र है। इसके बाद 'शरीरके अंगों परसे हाथ या बससे पानी नहीं पोछना चाहिये, नहीं तो शरीर कुत्ता चाटेको समान अपवित्र होजायगा और पुनः मान करनेसे शुद्धि होगी। ऐसा अद्भुत विधान करके उसके कारणों को बतलाते हुए लिखा है
यहाँ छपी पुस्तकों में खो'श्रपूर्व पाठ दिया है यह गलत है, वही पाठ पुत्रा है और बही जिनसेन त्रिवर्णाचार में भी पाया जाता है, जहाँ वह इसी अंथ परसे उन है।
यह मत्र हिन्दुओं के नित्र मंत्र पर ले, जिस मंत्रश्च इति मंत्रेष' शम्यों द्वारा खास तौर पर मंत्र रूप से उडेविश किया है, जरासा फेर बदल करके बनाया गया मालूम होता है
ये के चामत्कुल आता अपुत्रा गोत्रजा सृताः। ते गृहन्तु मया संघनिष्पीडनोदकम् - स्मृतिरनाकर। यथा:तस्मात्कार्य म मुजीत घम्बरेश करेण वा।
सानोम साम्यं च पुनः सामेन शुष्यति ॥ १६॥ । हिन्दुओं के यहाँ इस पत्र के आशयले मिलताखताएकवाक्य इस प्रकार है
तसालानो माक्सृज्यानानशाट्याम पागिमा । सानपण हस्तेन यो विजोऽहं प्रमार्जति ।
वृथा मवति तसान पुनः लागेन शुध्यति । 'स्मृतिरस्नाकर' में यह पाक्य 'शिरोवारि शरीराम्बु घल. सोयं यथाक्रमम् । पिबन्ति देवा मुनयः पितरो ब्राम पस्य तु ।। के अनन्तर दिया है और इससे तस्मात् पद का सम्बन्ध बहुत स्परहोजाता है। इसपिमालीका क१५ वाँ पयापितिशिरसन्निामक पयगावगा चाहिये था।