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[१६] अब रही श्राद्ध और पिण्डदान की बात | ये विषय भी मैन धर्म से बाहर की बीब हैं और हिंदूधर्म से खास सम्बंध रखते हैं। भहारकनी ने इन्हें भी अपनाया है और भनेक स्थानों पर इनके करने की प्रेरणा तथा व्यवस्था की है । पितरों का उद्देश्य करके दिया जिसके कुछ नमूने इस प्रकार :
चौधतट प्रकर्तव्यं प्राणायाम सथाचमम् ।
सध्या आई च पिण्डस्य दानं गेहेऽपपाशुधौ -७७॥ इसमें श्राद्ध तथा पिण्डदान को तीर्थतट पर या घर में किसी पवित्र स्थान पर करने की व्यवस्था की है। , नान्दीश्राद्धं च पूनांच"कुर्याच्च तस्याप्रेस-१८
इसमें 'नान्दीबाई' के करने की प्रेरणा की गई है, जो हिन्दुओं के श्राद्ध का एक विशेष है।
एकमेव पितुबाधं कुर्याईशे वशाहनि ।
ततो वे मात के बाद कुर्यादाचाविषोडश ॥१३-७८॥ इसमें अषस्थापिशेप को लेकर माता और पिता के थानों का विधान किया गया है।
वहमतिबिम्धार्थ मण्डपे सादिनापि वा। स्थापयेदेकमश्मानं वर पिण्डाविदचये ॥ १६ ॥ पिण्ड तिलोदकं चापि कर्ता पानाप्रतः। सर्वेपि धन्धवो बधुः नातास्तत्र निलोदकं ।। १७०॥ एवं शादपर्यन्तमेतत्कर्म विधीयते। पिण्ड विनोदकं चापि का वधाचदान्वहं . १७६ ॥ पिण्डवानतः पूर्वमन्ते च स्नानमिष्यते । पिएर कपित्यमात्रश्च सच शाल्यन्धसा तः १७७० तत्याचा पहिः कार्यस्तत्वा च शिक्षापिच । कर्तुः सख्यानकं चापि वहिः स्थाप्यानि गोपिते ॥१७॥
-१३ वा अध्याय। इन पदों में सूतक संस्कार के अनम्वर पाले पिण्डदान का विधान है और उसके विषय में लिखा है कि पिण्डादिक देने के लिये जलाशप के किनारे पर उस मृतक की पेह के प्रतिनिधिका