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[२०] जो एताच सामपंदात्मादृष्टव्यम् वास्य दिया है यह मुख से भाहर की पीक है-एसके किसी शब्द में सम्बंध नहीं रखती-उसे टोका को अपनी राय अपना साकार की खींचतानी कहना चाहिये। अन्यथा, थाइवल्क्यस्मृति में खुद उसके बाद अवता चचता 3र्ष पुन संस्कृता पुन' आदि वाक्य के द्वारा बन्यपूर्वा स्त्री के मेदी में 'पुनर्मूली का उल्लेख किया है और उसे पुनः संस्कृता सिवं कर पुनर्विवाह की अधिकारिणी प्रतिपादन किया है। साथ ही, सके क्षतयोनि (पूर्व पति के साथ साम को प्रसा ) मोर बचतयोनि (संस्कार मात्र को प्राप्त हुई) ऐसे दो मैद किये हैं। पुन विशेषतरूप 'मनुस्मृति और वशिष्ठस्मृति के उन वाक्यों से भी जाना शासकता है जो उपर उद्धृत किये जा चुके हैं। ऐसी हालत में सोनी जीका अपने अंधको (ग्राम) सम्मदाय के प्रवियत. खाना और दूसरों के अर्थ को विरुद्ध ठहरानाकुछ मी मूल्य नहीं रखतावह भलापमान जान पडता है।
पा सम्मान के वशिष्ठ ऋपिशासि किन्या किसी से पुरुष को दाम करी मां हो जोखीमसेनि हो, वसका पतित दो,रोगी हो,विधी हो या पेशवारी हो, अथवा सपोनी के साथ विवाह गई हो तो उसका हरण करना चाहियेऔर बस पर उस एवं विवाह को बहारमा चाहिये । मया"कुशीन पिहोमस्य पासादि पतितस्य च।
अपमारि विधर्मस्य रोगिय पेशवारिसम् ।
श्यामपि कन्या सगोत्रोडो " g) इस धाप में प्रयुक'सगोत्रोडा(ममान गोषी मेषियाही हुरीपद 'दत्ता पद पर प्रधामका सामना है और उसे 'विषादिवा सचिव करता है। सोमवावे मी अपने इस विकृतपत्यूढा' नामक शाक्य में स्मृधिकाका मन उदधृत किया है ससमसमा पुनर्विचारयोग्य ती को जहा' ही पता का अर्थ होता विवाहिता ।