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, मास्तिस्यभाषा पवाशिम तर्पति बसु ।
विषन्ति वाषिर पिनरो मानिः ।
भारकजी में भी, इस विवर्णाचार में, तर्पण को मान का एक पग बताया है। इतना ही नहीं, बल्कि हिन्दुओं के यहां मान के मो पांच भग-संकल्प, सूक्तपठन मार्नन, अघमर्षण और तर्पणमाने जाते हैं उन सबको ही अपनाया है। यथा:संकली [ ] [क] पठनं मार्बने बाबमर्पणम् ।। देवादि पिउपचषपंचांग स्नानमाचरेत सानपंचांगमिष्यते]
-१०५॥ यह लोक मी किसी हिन्दू पंथ से लिया गया है। हिन्दुषों के
'मममस पापमशन को कहते हैं। तुओं के यहां यह स्मानांगको पापनाशन कियाकाएक विशेष अंग मामा माता है। में
श्रुतं च सत्य मामकाएक मसिद एक है, जिसे 'भवमर्षस एक कहने है और जिसका पिभी असमर्पक है। इस सूक को पानी में निमम होकर खीव पार पड़ने से सब पापों का नाश हो जाता है और थानको भवमेध या कोरस पापों का नाश करने वाला माना गया है, ताकि शंखस्थति निम्नवायों से प्रकट:
aar निममस्तु त्रिपठेदधमपंचम् ॥ १-१२॥ - ययामेघा तुराष्ट्र सर्वयापागमोदनः। ..
तथाऽवमर्षण पूर्व पापप्रसाशनम् ॥६-३ वामन शिवराम ऐपठे में भी अपने कोश में इसकी क मान्यताका नव किया है, और शिक्षा कि गुरुपती, माता, सथा भगिनी भादि के साथ सम्मोग से घोरतम पाप मीस मुकको तीन बार पानी में पड़ने से नाश को प्राप्त हो जाते है, पेसा कहा माता है'यश
i thcice in water.