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[२९३] • ' इससे साफ जाहिर है-और पूर्व कथनसम्बन्ध से यह पोर मी स्पष्ट हो जाता है कि महारकी ने यह विवाहिता लियों के लिये पुनविवाह की व्यवस्था की है। तीसरे और चौथे पथ में उन हालतों का उल्लेख है जिनमें पिता को अपनी पुत्री के पुनामाह का अधिकार दिया गया है, और वे ऋगश: वर के दोष तथा सम्बन्ध-दोष को लिये हुए हैं। पाँचौ पद्य में किसी हालत विशेष का उन्न्ह नहीं है. वह पुनर्विवाह पर एक साधारण वाक्य है और इसी से कुछ विद्वान उस पर से विधवा के पुनर्विवाह का भी प्राशय निकालते हैं । परन्तु यह बात अधिकतर 'गालव' नामक हिन्दु ऋषि के उस भूख वाक्य पर अवलम्बित है जिसका इस पथ में उल्लेख किया गया है। वह वाक्य यदि खाली विधवाविवाह का निषेधक है तब तो मारकली के इस वाक्य से विधवाविवाह को प्राय: पोषण बसर मिलता है और उससे विधवाविवाह का माशय निकाला जा सकता है, क्योंकि वे गाय से मिन मत रखने वाले दूसरे पाचार्यों के मत की ओर झुके हुए हैं । और यदि वह विधवाविवाह का निषेधक नहीं किन्तु जीवित भर्तृका एवं अपरित्यक्ता नियों के पुनर्विवाह का ही निषेधक है, तब भधारकजी के इस वास्य से पैसा प्राशय नहीं निकाला जा सकता और न इस वाक्य का पूर्वार्ध विधवाविवाह के विरोध में ही पेश किया जा सकता है। तलाश करने पर भी अभी तक मुझे मालव ऋषि का कोई ग्रंथ नहीं मिला और न दूसरा कोई ऐसा संमहान्य ही उपलब्ध हुआ है जिसमें गालय के प्रकृत विषय से सम्बन्ध रखने वाले वाक्यों .का भी संग्रह हो । यदि इस परीक्षाक्षेत्र की समाप्ति तक भी ना कोई प्रेम मिल गया जिसके लिये खोज जारी है तो उसका एक परिशिष्ट में जरूर उन्लेख कर दिया पाया। फिर भी इस बात की संभावना बहुत-ही.काम.बबन पड़ती है कि गालवं अपि.ने ऐसी सबो