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पाठकानन ! देखा, मैसी विभिन्न व्यवस्था है । 1 से ही में दिन पर्व के दिन हो, पापुरुषों में से कोई एक अथमा होना होता हो, बीमार हो, भनिछुक हों, तीर्थयात्रादि धर्भ त्रयों में लगे हों या परदेश में स्थित हो परतु उसे सपा मोग करना ही चाहिये !! यदि नहीं करते है तो ये उस पार से घोर पाप के मागी अथवा दुर्गति के पात्र होते है। इस प्रयापक व्यवस्था का भी यही कुरा ठिकाना है ।। स्वरुषि की प्रविष्य, समयम के अनुष्ठान, मार्य के पासन और योगाभ्यासादि के द्वारा अपने बम्पुदय के पत्र का तो इसके मागे कुछ मूल्य ही नहीं रखता !! समझ में नहीं पाता धूम (गर्मस्य नक) के विमान न होते तरमी उसकी हा कायम से हम माता है यदि জীগ বি অগ্ন্য কী গাই বলা প্রশব স্ম, শ্যবল স্মঘাৰ पर है। यदि मोग न करने से सूबहत्या का पाप लग जाता है तब तो का भी त्यागी, जो अपनी जी को छोड़कर ब्रह्मचारी वा मुनिजमा हो, इस पाप से . नहीं बच सकता और समाज के मत से पूम्प पुरुषों अथवा महान मामाओं को चोर पासिको तपा दुर्गति का पात्र मार देना होगा। परन्त देख मानधर्म में जल कीची माविका और उसके प्रापसे भनय मस्ति ऋतुकात में भोग न करते हुए भी पाप से मामिल रहे हैं, और सदति को माम हुए है। बनारठि से यह कई चाहिनी नहीं कि शुद्ध काम में भोग किया ही बाप । हो, मोग बो किया जाय तो वह संतान के জি ষ্টিয়া আর গীয় অহয় ইনক্স লিখা গান খইল, বুৰী অহয়। যদি নাকি রিয়ীपेक्षा मी लगी हुई है अर्थात् प सी एम यदि बस संगय रोगादिक के कारण या और तौर पर वैसा करने के लिये असमर्थन हो, और पा समय भी कोई पांदिवर्य कास न हो तो वे परस्सा कामबन कर सकते
इसी भवसा कोरियऐसा नियम मा गहा है। और पहा