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मही चाहिये । और इन लोगों को न तो कमी कुछ देना चाहिये, म इनकी कोई चीन लेना चाहिये और न इनको कमी छूना ही चाहिये; क्योंकि ऐसा करना बोकापवाद का-बदनामी का कारण है। ' पाठकलन ! देखा, कैसे सकोर्ण, शुद्र और मनुष्यत्व से गिरे र उदगार है । व्यक्तिगत घृणा तपा देष के माों से कितने प्रयास मेरे हुए हैं। और बगत् का उद्धार अथवा उसका शासन, रक्षण तथा पालन करने के लिये कितने अनुपयोगी, प्रतिकूल भोर विरोधी हैं। ज्या ऐसे उदगार भी धार्मिक उपदेश कहे जा सकते हैं अपना यह कहा जा सकता है कि वे जैनधर्म की उस नदारनीति से कुछ सम्बक रखते हैं जिसका चित्र, बैनयों में, बैन तीर्थकों को 'समवसरण सभा का नशा खींच कर दिखाया जाता है। कदापि नहीं ऐसे उपदेश विश्वप्रेम के विघातक और संसारी जीचों की उमति तथा प्रगति के याधक है। जैनधर्म की शिक्षा से इनका कुछ भी सम्बंध नहीं है। जरा गहरा उतरने पर ही यह मालूम हो जाता है कि वे कितने धोये और निःसार हैं। मला भब उन गनुष्यों के साथ बिन्हें हम सममते हो कि के बुरे है-बुरा माचरण करते हैं-समाषण भी न किया जाय, उन्हें सदुपदेशन दिया चाय अपमा उमकी भूल न बताई जाय तो उनका सुधार कैसे हो सकता है ! और कैसे चे सन्मार्ग पर लगाए जा सकते हैं। क्या ऐसे
in को बार से सपा पेक्षा पार करना सनो हितमा RAP को चिन्ता न रखना, और उन्हें सदुपदेश देकर सन्मार्ग पर न लगाना जैनधर्म की कोई नीति भया जैन समाज के लिये कुछ हट कहा ना सकता है ? और क्या सधे बैनियों को दया-परिणति के साथ उसका कुछ सबन्ध हो सकता है। कदापि नहीं बैनधर्म के सोपोर नेता भावार्यों तथा महान पुलों ने भगपिन पापियों, भील पांडालों