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१०५ दुष के दिन देख मचने से सुवर्ण की वृद्धि होती है 'मी बढ़ती है-गुरुवार सपा शनिवार के दिन मलने से सदा वायु बढ़ती है, वि. बार के दिन माने से पुत्र का भरण होता है, मंगल के दिन की माविश से अपना ही मरण हो जाता है और शुक्रवार के दिन की मानिय सदा धन का क्षय किया करती है।
तेल की मालिश का यह फल कितना प्रत्यक्षविबद्ध है इसे बतभाने की जरूरत नहीं । सहदय पाठक अपने नित्य के अनुभव तथा व्यवहार से उसकी सहन ही में जांच कर सकते हैं। इस विषय की और भी गहरी ऑष के लिये अनसिद्धान्तों को बहुत कुछ टटोला गया और कर्म फिलॉसॉकी का भी बहुतेरा मयन किया गया परंतु कहीं से भी ऐसा कोई नियम उपलब्ध नहीं हुमा बिससे प्रत्येक दिन के तेल मर्दन का उसके सकस फल के साथ भविनामावी सम्बन्ध (व्याति ) स्वापित हो सके वैवक शाल के प्रधान पंप भी इस विषय में मौन मालूम होते हैं। वाग्मट प्राचार्य अपने 'मध्यगदप' में नित्य देख मर्दन का विधान करते हैं और उसका फल बतलाते है-'मरा, श्रम तथा वात विकार की हानि, दृष्टि को प्रसन्नता, शरीर की पुष्टि, भायु की स्थिरता, सुनिदा की प्राति और त्वचा की हड़ता।' और यह फस बात कुछ समीचीन नान पड़ता है। यथा
अपंगमाचरेनित्यं स बरामवातहा ।। · मिसाएवायुःखमस्वास्ववायंकत् ॥॥
मैं इस ढूँढ खोज में, शब्दकारभु कोश से, हिन्दू शासों के दो पंच बरूर मिले हैं जिनका विषय भारकजी के पथ के साथ बात कुछ मिलता श्रृंखला है, और वे इस प्रकार है- .. ' मन परति वर्ष कीर्तिशामश्च सोमे
मौमे मृत्युमबति नियतं चन्द्र पुत्रसामः।