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बन र देणान्तर को गया हो, और उसका कोई समाचार पूर्वादि अवस्या-क्रम से २८, १५ या १२ वर्ष तक सुनाई न पड़े तो इसके 'बाद उसका विधिपूर्वक प्रेतकर्म (मृतक संस्कार ) करना चाहिये-- सूतक (पास) मनाना चाहिये और श्राद्ध करके वर्ष तक का प्रायश्चित सेना चाहिये। यदि प्रेतकार्य चुकने के बाद वह पापाय तो सो पी के घरे तया सर्व पौषधियों के रस से नहलाना चाहिये, उसके सब सरकार फिर से करके उसे फोपनीत देना चाहिये और यदि उसकी पूर्वपाली मौजूद थे तो उसके साथ उसका रिसे विवाह करना चाहिये । :--
प्रदेई गते वासी हरता श्रूयते रचना यदि पूर्वधषकस्य यावरणाविशति: BR ज्या मध्यवयस्कस्य भन्दा पंचदौर चन् । ध्याइवयस्कस्य स्थाइ मायापलरम् ॥ भवभय प्रेतकर्म कार्य सस्प विधानतः । पावं छत्वा पहन्दं तु माया सारक्षित-1181 प्रेक्षकाय सते तस्य यदि आत्मागतः। भूतकम्मेन परताव्य सर्वोपविमिरप्यथ ।। ८३ ॥ संस्कारान्सकसान कृत्या मौसीधाममावरन् । पूर्वपल्या सहवास्थ विवाह काये एहि ।।
पाठकगया ! दोखिये, इस विडम्बना का मी कुछ ठिकाना है । विना मेरे ही मला मना लिया गया और उसके मनाने की भी भारत समोर मई ।।। यह विडम्बना पूर्व की विडम्बनाओं से भी बढ़ गई है। इस पर अधिक शिधने की बात नहीं। जैन धर्म से ऐसी बिना सिर पैर को बिडम्बनामक म्यबस्याओं का कोई सम्बन्ध नहीं है। (क)सकमनाने के इसने पनी महारफला भाग चलकर मिडते :