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सम्बन्धमा है और न बैनियों में, आमतौर पर, नाम का काटना को एक दिन के लिये रोका हो जाता है, कि यह उसी दिन, नितमा शाम होता है, काटदी जाती है और उसको काट देने के बाद ही दानादिका पुरुष कर्म किया जाता है।
(ग)तरह अण्णाय में गहारकानी एक व्यवल्या यह गी करते है कि यदि कोई पुन दूर देशान्तर में स्थित हो और उसे अपने पिता या गाता के गरम पा समाचार मिल तो उस समाचार को सुनने के दिन से ही उसे दस दिन का मूनक ( पातक) al-चाहे यह समाचार उसने कई वर्ष बाद ही पयों न सुना हो । यथाशिमग चमूनो स्थानमा दूरस्थापि हि पुषकः। शुस्यातदिनमार पुत्राणाशाप्रक[दशासूनकीमवेत ]॥७॥
या भी सूतक की बुध का विडम्बना नहीं है। उस पुत्र में विक्षा का दाह-मग किया गही, शष को पर्या नहीं, सब के पीछे रगशान भूमि का यह गया नहीं और न पिता के मृत शरीर को पित घायु ही उस पहुँचमा पन्तु तिने असे के बाद तया हमारी मांस की दूरी पर बैन हुआ गी-वह अपवित्र हो जाता है और शान पूजगारिक धर्मकृत्यों के योग्य नहीं रहता । यह कितनी हास्यास्पद व्यवस्था है इसे पाठक खप सोच सकते हैं !!! क्या यह । "बासमलि पाने व मालदेवमापूर्ण पितुरधिकार एवं पंचम पदयादिम जम्मदाधिएमाषु पाने चाधिकार तत्र विषय प्रति. प्रदेषि योयो ।
-मापौधनिर्णय । . इसी तरह पर मापने पति पत्नी को भी एक दूसरे का मूल्यु. समाचार सुनने पर इस दिन का सुनक तवाया है। यथा- . माताप्रियाशीच इसाई क्रियते सुवैः। अनेक इमायोस्प वापरलरम् ॥ ७० ॥