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यह माना श्रीमाय कि हे विपक्ष ! मुमापकी तरह पवित्रता, यायोग्यता और बौपित्यादिगुणों की प्राति होवे और भाप मेरे बसे चिन्हों के (मनुष्याचार क) धारक हो, प्रार्थना के मनंतर उसपर तथा अनि की बीन प्रदक्षिणाएँ देकर खुशी खुशी भपने घर को जाना चाहिये और वहीं, मोसन के पश्चात् सबको संतुष्ट करके, रहना चाहिये । साथ ही, इस संस्कारित व्यक्ति को पीपक पूलने की यह क्रिया हर महीने इसी तरह पर होमादिक के साथ करते रहना चाहिये और खासकर माक्स के महीने में तो उसका किया जाना बहुत ही आवश्यक है। मयाः
चतुर्थवावरे चापि संस्मात पिवसनियो संचितमपूजादि कर्म कुर्याधयोषितम् ॥ ५५॥ अविस्थानस्थित तुक छेववाहाविवक्षितम्। ममोह पूनितुं गच्छानुयुक्यावत्थमूलम् Neeg धर्मपुगादिमाशामिईदिनुपन्तुमित स्कन्धदशमलव सूखं अनेक विषयेत् 190 अवस्य पूर्वदिमाये स्वपिस्यापमंड। भवन समिदिम होमं कुर्याद अनादि । एतत्वयायोग्यत्वबोधिताया मकन्तु में। स्वरतोधितुम त्वं च महविनाधरी म
पुतमिति संपाय सर्वमगमोदकम् । पर पम्हि विपरील दो. पच्छेद एवं झुवा ॥१०॥ पर्वको म मिथ्यात्वं सौकिकाचारात्। . मोबनानन्तरं साल्वाष्प निवोद रहे । • प्रतिमास किया कुर्यायोमपूज्यपुरस्परम् ।
भावनेतु विशेष हा क्रियावियत्री मता ॥