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[१५४] पीपल की यह पूजा जैनमत-सम्मत नहीं है। जैनदृष्टि से पीपल न कोई देवता है, न कोई दूसरी पूज्य वस्तु, और न उसके पूजन से किसी पुण्य फल प्रयवा शुमफल की प्राति ही होती है, उसमें पवित्रता, पूजनपात्रता (यायोग्यता) और विज्ञता (बोधित्व)आदि के वे विशिष्ट गुण भी नहीं है जिनकी उससे प्रार्थना की गई है । इसके सिवाय, बगह जगह जैन शाखों में पिप्पलादि वृक्षों के पूजन का निषेध किया गया है और उसे देवमूढता अथवा लोकमूढता बतलाया है; जैसा कि नीचे के कुछ अवतरयों से प्रकट है।
मुखलं देहली चुल्ली पिप्पलश्चम्पकोजसम् । देवाथैरभिधीयन्टे वन्यन्त है. परेऽत्र के ma-21
अमितगति उपासकाचार पृथ्वी ज्वलनं सोय देहली पिप्पलादिवान् । देवतात्वेन मन्यन्ते ये ते चिन्या विपश्चितः ॥१-ven
-सिझन्ससार। क्षेत्रपाल शिवो मागोक्षुताश्च पिप्पलादयः । ...... यत्राच्यन्ते शटैरेते देवमूढः स उच्य ।।
पारचतुर्विशतिका। ...तरस्तूपास मकानां चन्दनं सृगुसंश्रयः ।... ..एवमादिषिमूढाना शेयं मूहमनेकधा ||
-यशस्विलका ...वृत्तपूजादीनि पुण्यकारणानि भवन्तीति यहन्ति वल्लोकमूढत्व विक्षयं ।
__ . .-व्यसंग्रहटीका ब्रह्मदेवकना। .वृक्षाविपूजनम् । ..... लोकमूद प्रवक्ष्यते ।
बमोपदेशंपीयूषवभावकाचार।