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क्या सोचकर रविवार के दिन लोन का निषेध किया है। जैन सिद्धान्तों से तो इसका कुछ सम्बंध है नहीं और न भनियों के प्राचार-विचार के ही यह अनुकूल पाया जाता है, प्रत्युत उसके विरुद्ध है। शायद भतारकेबी को हिन्दूधर्म के किसी ग्रंथ से रविवार के दिन मान के निषेध का भी कोई वाक्य-मिल गया हो और उसी के भरोसे पर माप ने जैसी माला बारी कादी छ । परन्तु मुझे तो मुहर्तचिन्तामणि श्रादि पंषों से यह माचूम हुमा है कि रोगनिर्मुसमान' तक के लिये रविवार का दिन प्रशस्त माना गया है। इसीसे श्रीपतिजी लिखते हैं-'बग्नेचरें सूर्यकुजेज्यवारे......लानं हितं रोगविमुककानाम् ।। हो, दन्तधावन का निषेध तो उनके यहाँ व्यासजी के निम्न वाक्य से पाया जाता है जिसमें कुछ तिथियों तथा रविवार के दिन दाँतों से काष्ठ के संयोग करने की बाबत लिखा है कि वह सातवें कुल तक को दान करता है, और जो आन्हिकसूत्रावति में इस प्रकार से उद्धृत है
प्रतिपदपाही नवम्यां रविवासरे।
बतानां कासंयोगो पहत्यासतम कुलम् । परंतु जैनशासन की ऐसी शिक्षाएँ नहीं हैं, और इसलिये गशरकामी का उक्त कपन मी भेनमत के विरुद्ध है।
घर पर ठंडे जल से लान न करने की प्राज्ञा ।
(५)-महारकनी ने एक खास माझा और भी जारी की है और यह यह है कि घर पर कमी ठंडे जल से लान न करना चाहिये। भाप निखते हैं
अपने चैव मांगल्ये पोचवतु सर्वदा।
शीतोदकेन न स्नाया घार्य तितकं या nun अर्थात्-तेल मला हो या कोई मांगलिक कार्य करना हो उस