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साथ निनका प्राय: कोई मेल नहीं । इससे पाठकों पर अंथ की बसलियत भी मी मी नसे पक्ष माया और बनो प्रयकर्ता की मनोदशा का मी कितना ही विशेष अनुभव हो जायगा अपवा यो कहिये ষ্টি মাজনী অঙ্ক ঋষ্টি জ ন য় থ অল্প বয়ঃ
देव, पितर और ऋषियों का घेरा। . (ौच' नाम के दूसरे अध्याय में, पुरला करने का विधान करते हुए, मटारकनी में लिखा है* पुरतः सर्वदेवाय दक्षिणे व्यन्त [पितर स्थिता था।
ऋषयः पृष्ठतः सर्वे यामे गण्डूपमुत्सृजेत् [ माचरेत् ] ॥ ६०
* इस पच के अनुवाद में सोनी ने बड़ा समासा किया है। मापने 'पुरता का अर्थ 'पूर्व की तर, 'त' का अर्थ 'पश्चिम की ओर' और 'नामे पद के साथ में मौजूद होते हुए भी दक्षिणं का अर्थ दाहिनी ओर न करके, दक्षिण दिशा की तरह प्रक्षत किया है और इस साल प्रलती के कारण ही पूर्व, दक्षिण तथा परिम दिशाओं में क्रमशः सर्व देवो, स्यान्तरों तथा सर्व शपियों का निवास बता दिया है ! परन्तु 'वामे का अर्थ या 'रदिशाम कर एके और इसलिये श्रापको " alन दिशामों में कुरक्षा न के" के साथ साथ यह भी लिखना पड़ा-"फिन्तु अपनी चौई ओर फेंके"। भन्नु ाँ और यदि पूर्व दिशा हों, पक्षिण दिशा छो, म पनि विश्था हो तर क्या बने और कैसे घोई ओर रक्षा करने का नियम कायम है। इसकी आपको कुछ मी खबर नहीं पड़ी ! और म यही खयाल आया कि नागम में कहाँ पर ये दिशाएँ इन देवादिकी के लिये मखसून अथवा निर्धारित की गई है। वैसे ही बिना सोचे समझे ओ जी में पाया कि मारा! यह भी नहीं सोचाक यदि