________________
[ 2] दुराग के प्रयोगों को बदल कर रखने की जमत नहीं मगना और न अपने को उमगा अधिकारी हा गामना है । गोगगनजी को सिनि ग्रंथ पर से ऐमी गालूग नहीं होनी वे इस विषय में प्रार: कुछ भी सावधान नजर नहीं पाते उन्होंगे सैकड़ों पुगतान घों को विनासरत ही बदल डाला है और जिन पदों को ज्यों का स्यों उठाकर रखा है उनके विषय में प्राय: कोई सूचना ऐसी नहीं कि जिससे दूसरे विद्वानों के वाक्य सग जाय । साथ ही, ग्रंथ की रचना-प्रणाली भी एपी मालूम नहीं होती जिसे प्रायः 'प्रयोगंबद की नौनिका अनुमग्ण करने वाली कहा जा म एसी हालत में इस पय द्वारा जिन बानों की सूचना की गई है ये काव्यपारीको उम फलंका को दूर करने के लिये किसी तरह भी समर्थ नहीं हो सानी । उन्हें प्रायः बैंग मात्र समगना चाहिये अथवा यों कहना चाहिये कि ये पांच से कुछ शर्म सी उतारने अथवा अपने दुष्कर्म पर एक प्रकार का पर्दा डालने के लिये ही लिली गई हैं । अन्यथा, विद्वानों के समक्ष उगमा कुछ भी मूल्य नहीं है।
अन्य में एक जगह कलौतु पुनमहाहं वर्जयेदितिगालको पसा लिखा है। यह वाश्य येशक प्रयोगंबद की नीतिका अनुसरण करने वाला है-इसमें 'गालव ऋषि के वाक्य का उनके नाम के साथ उलेख है । यदि सारा अन्य अथवा ग्रन्थ का अधिकांश माग इस तरह से भी खिला जाता तो बह प्रयोगधर की नीति का एक अच्छा अनुसरण कहलाता। और तब किसी को उपयुक आपत्ति का अबसर हीन रहता । परन्तु अन्य में, चार उदाहरणों को छोड़कर, इस प्रकार की रचना का प्रायः सर्वत्र प्रभाव है।