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[५] द्वादशाहात्परं नाम फर्म जन्मदिनान्मानम् । अनुकले सुनस्याम्य पित्रारगि सुखावहे ॥ ३ ॥
(च) निवर्णाचार में, ' नाम ' क्रिया के अंगता, बारीक के कान नाक बींधने और उरो पालो में बिठलीने के दो गंन दिये है
और इस तरह पर 'फर्णवधन' तथा 'आंदोलारोपण ' नाम की दो मीन क्रियाओं का विधान किया है, निनका उस ३३ क्रियाओं में कहीं भी नागोनल नहीं है।यादिपुराण में भी इन क्रियाओं का कोई कयन नहीं है। और इसलिये महारानी का यह विधान भी भागारिननसेन के विरुद्ध है और उनकी इन क्रियाओं को मी 'मिस्याक्रियाएं समझाना चाहिये। ये क्रियाएँ भी हिन्दू धर्म की खास किया है
और उनके यहाँ दो अलग संस्कार गाने जाते हैं । मालूम नहीं महारानी इन दोनों कियाशों के सिर्फ मंत्र देकर ही क्यों रह गये और उनका पूरा विधान क्यों नहीं दिया ! शायद इसका यह कारण हो कि जिस मन्य से भाप सम्रह कर रहे हों उसमें कियाओं पर गंत्र भाग थलग दिया हो और उस पर से नाम किया ये मंत्र को नकल करते हुए उसके अनन्तर दिये हुए इन दोनों गंत्रों की भी आप गाल कर गये हो और आपको इस बात का खयाल ही न रहा हो कि हमने इन क्रियाओं को अपनी तेतीस क्रियाओं में विधान अथमा नामरण ही नहीं किया है। परन्तु कुछ गी हो, इससे मापके ग्रन्थ की अव्यवस्था और वैनातीवी असर पाई जाती है।
यहाँ पर मैं इतना और भी बनला देना चापता हूँ कि मेरे पास ब्रह्ममूरि-त्रिवर्णाचार की जो हस्तलिखित प्रति पं० सीताराम शास्त्री की शिखी हुई है उसमें अान्दोलारोपण का मंत्र तो नहीं शायद बूटगया हो-परन्तु कर्णवेधन का गंत्र जरूर दिया हुआ है और वह नामक के मंत्र के अनन्तर ही दिया हुआ है । लेकिन यह मंत्र इस त्रिवर्णाचार के मंत्र से कुछ मिन है, जैसा कि दोनों के निम्नरूपों से प्रकट है