________________
[ ५२ ६ क्रियाओं में, निर्वाण' क्रिया को छोड़कर, मृतक संस्कार, पिण्डदान, आइ, दोनों प्रकार के सूतक (जननाशौच, मृताशौच ), प्रायश्चित, तीर्थयात्रा और धर्मदेशना नाम की क्रियाएँ ऐसी है जो प्रादिपुराण में नहीं हैं। आदिपुराण में उक्त २४ क्रियाओं के बाद गौनाध्ययमत्व' आदि २६ क्रियाएँ और दी है और उनमें मन्तिा क्रिया निति' अर्थात् निर्वाण बतलाई है । और इसीसे ये क्रियाएँ गर्भाधानादि निर्वाणान्त' कहलाती हैं । भगवजिनसेन ने इन गधान से लेकर निर्वाण तक की ५३ क्रियाओं को 'सम्यक् क्रिया' मतलाया है
और उनसे मिल इस संग्रह की दूसरी क्रियाओं को अथवा 'गर्भाघानादि स्मशानान्त' नाम से प्रसिद्ध होने वाली दूसरे बोगों * की क्रियानों को मिथ्या क्रिया ठहराया है। यया:
*हिन्दुओं की क्रियाएँ 'गर्भाधानादिश्मशानांत' नाम से प्रसिद्ध हैं, यहथात 'याज्ञवल्क्यस्मृति के निम्नवायसरपट है
ब्रह्मक्षत्रियविदशना वर्णास्वाथालयो द्विजाः।
निकाधा श्मशानान्तास्तेषां वै मंत्रित किया ॥१०॥ महारफजी ने अपनी ३३ क्रियाएँ विस क्रम से यहाँ ( उपयों में) दी है इसी क्रम से उनका भागे कथन नहीं किया, 'मृतक संस्कार माम की क्रिया को उन्होंने सब के अन्त में क्या है और इसलिये सनकी इन क्रियाओं को भी 'गर्भाधानादिश्मशानांत' कहना चाहिये। यह दूसरी बात है कि उन्हें अपनी क्रियाओं की सूची उसी क्रम से देनी नहीं आई, और इसलिये उनके कथन में क्रम-विरोध हो गया, जिसका कि एक दूसरा नमूना बतावतरण क्रिया के बाद "विवाई को न देकर 'प्रायाचित' का देना है। .