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[१] में भी इन्हें 'उशना' के पचन लिखा है। मिताक्षरा आदि मयों में इन पचों का बो रूप दिया है उससे मालूम हाता हानि पहले पत्र में सिर्फ 'च' की जगह 'चद' बनाया गया है, इस का उत्तरार्ध 'सा सचलायगाथापालावा लात्वा पुनःस्पृशत्' नामक तवराम की बगह काया किया गया है और तीसरे में त्यागसता की यह 'त्याग लामाका परिवर्तन हुआ है। इन तीनों परिवर्तन में से पहला परिवर्तन निरर्षक है और उसके द्वारा पक्ष का प्रनिपार विषय का कम हो जाता है या सी भर से पीदिन हो । यदि रजस्वला होगाय तो उसी की शुद्धि का विधान रसमा कन्ति को पहले से रमस्वना हो
और पीई बिसे वर भाजाय उसकी सुद्धकी कोई व्यवस्था नहीं रहती। 'च' शब्द का प्रयोग इस दंप पोरन देताह और यह दोनों में से किसी भी वाया की जलसा के लिये एक हो शुद्ध का विधान बनाना है। मन की बार चित्'का परिवर्तन या ठीक नहीं था। मा परिवर्तन एक विशेष परिवर्तन है और उसके सम्बस भगाइन की बात को घोडार उस दूसरी जी के साथ साम की बात को ही अपनाया गया है । रहा सीसरा परिवर्तन, यह बड़ा ही शिक्षण भाग पड़ना है, उस 'लाता' पद का सम्बन्ध अंतिम 'सा' पद के आप ठीक नहीं बैठता और 'त्याग' पद से उसका और भी ज्यादा सस्ता है । हो सकता है, कि यह परिवर्तक का असावधाम सखों की ही कर्वन हो, उनके रा 'यागसतात: का 'खाम लाता लिखा ना कुछ भी मुश्किल नहीं है, क्यों कि दोनों में अबरों की बहुत कुछ समानता है, परंतु सोमीनी से
शायद इसीक्षिय पचासनी मामी इस पथ के अनुवाद में लिखने में कोई स्वर से पीड़ित की पधिरजसका होगाय तो उसकी साबिसकोसी किया करने सेवाश्व हो सकती है।"