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में 'अर्कव्योदुम्बरः' की जगह 'झर्क आमखक:' ऐसा परिवर्तन किया गया जान पड़ता है। दोनों पाठमद साधारण हैं, और परिवर्तित पद के द्वारा उदुम्बर काठ की जगह श्रवले की दाँवन का विधान किया गया है।
कुमाः काशा पवा दुर्गा उशीराश्च कुकुमराः ।
गोधूमा यो सुजा दशर्माः प्रकीर्तिता ॥ ३८१ ॥
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यह 'गोल' ऋषि का वचन है । स्मृतिरत्नाकर में भी इसें 'गोमिस' का वचन लिखा है। इसमें 'गोधूमाभाथ कन्दरा:' की जगह 'उशीरा कुकुंदरा' और 'उशीरा' की जगह 'गोधूमाः' का परिवर्तन किया गया है, जो व्यर्थ जान पड़ता है; क्योंकि इस परिवर्तन से कोई अर्थभेद उत्पन्न नहीं होता सिर्फ दो पदों का स्थान बदलता है ।
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एक पंपावान धर्मिणां सहभोजने ।
यद्येकोऽपि स्वजत्पाणं शेपैरनं न भुज्यते ॥ १-२२० ।
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ग्रह पथ, जिसमें सहभोजन के अवसर पर एक पंक्ति में बैठे हुए किसी एक व्यक्ति के भी पात्र छोष देने पर शेष व्यक्तियों के लिये भोजनस्माग का विधान किया गया है, जरा से परिवर्तन के साथ 'पराशर ' ऋषि का वचन है और वह परिवर्तन 'विप्राणां' की जगह ' धर्मिणां ' और ' शेषमत्र न भोजयेत् ' की जगह 'शेषरखं न शुन्यते ' का किया गया है, दो बहुत कुछ साधारण है
पाः-१ 'सूत्रं प्रस्तावः' इति भ्रमरकोशः । ५ ' प्रस्रावः सू' इति शपमा ।
३ 'उच्चारपथयेत्यादि' वाद पुरीषः प्रखवणं सूत्रं ।
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इति क्रियाकलापटीकायां प्रमाचन्द्रः ।
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